किसने कितना काम किया
यह छोडकर किसने क्या किया
कौन मॉ- बेटा ,कौन पप्पू
कोन रेनकोट पहनकर बाथरूम में स्नान किया
तो कौन स्कैम में फँसा है
तो कौन राम को याद कर रहा है
कौन भूल गया
किसने क्या बॉटा और क्या खाया
संसद से लेकर सडक तक बदजुबानी
यह हमारे राष्ट्र के खेवनहार
शालीनता तो विलुप्त ही हो गई है
संसद की गरिमा का ध्यान भी नहीं
कौन- सी भाषा का प्रयोग
दूध का धुला तो कोई भी नहीं
वार पर वार और शब्दोंके बाण चल रहे हैं
वह भी हँस हँसकर
इतना नीचे तो संसद कभी गिरा नहीं था
कटाक्ष करने से तो अच्छा मौनी बाबा बन कर रहना
कौन क्या बोल रहा है
यह तो सब समझ रहे हैं
व्यंग्य तो अनपढ भी समझ जाता है
और वह इसमें माहिर भी होता है
पर जनता के नुमाइंदे और पार्टी के प्रवक्ता
अभिनय करना इस तरह से
मानों यह नेता नहीं कलाकार है
दूसरोँ की खिल्ली उडाने से पहले हर नेता अपने गिरेबान में झॉककर देखे
और शालीनता की भाषा का प्रयोग करे
तभी देश और देशवासियों का कल्याण होगा
काम करे और काम द्वारा जवाब दे
तंज कस कर नहीं
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Monday, 13 February 2017
रेनकोट और बाथरूम पर राजनीति
महिलाओं की आजादी का मापदंड क्या ???
नए साल का जश्न मनाने की ईच्छा सालों से मन में
घर में सख्ती ,पाबंदी
बाहर जाने पर लगाम
शराबी ,गर्दुल्ले ,आवारों का भय
छेडछाड से डरना और घर में टी वी पर जश्न मनाते देखना
बारह बजता ,नया साल आता
समाचारों में समुंदर किनारे मौज- मस्ती करते देखना
आखिर पढाई पूरी हो गई
जॉब भी लगी दूसरे शहर में
अबकी बार तो शान से न्यू ईयर सैलिब्रेट होगा
पूरी आजादी ,घरवालों की रोक- टोक नहीं
सहकर्मियों के साथ प्लान बना
पब में गए ,मौज- मस्ती की
बारह कब बज गए ,पता ही न चला
आज आजादी मिली थी
पर देश में लडकियों पर आजादी कहॉ है???
मन प्रसन्न था ,साथियों ने गली तक छोडा
घर पास ही था .
अब किस बात का डर
पर क्या पता था कि दो नराधम घात लगाए बैठे है
बाइक पर सवार आ खीचने लगे
शोर- गुल किया और सामना भी किया
वे तो भाग गए पर आज भी वह याद कर कॉप जाती हूँ
अगर कुछ गलत हो गया होता तो??
दूसरे दिन अखबार की सुर्खिया
नेताओ की टिप्पणियॉ
ये छोटे कपडे पहनती है इसलिए
पर मैंने तो उस दिन पूरे कपडे पहने थे
घर के पास होकर भी कोई शख्श बचाने नहीं आया
अपनी रक्षा स्वयं करनी पडी
हॉ ,अगर कोई अनहोनी घट जाती
तब यही लोग जुलूस निकालते ,नारे लगाते
रास्ता जाम करते ,आगजनी करते
लोग आते- जाते देखते रहते पर बचाने कोई नहीं आता
पर जब कोई निर्भया मौत के मुँह में पहुँच जाती है
तब उसके नाम पर आंदोलन
यही तमाशबीन बाद में तमाशा बनाते हैं
पहले ही संज्ञान लिए होते तो ??
भीड में तो शक्ति होती है
वह पुलिस की लाठी का जवाब पत्थर से देती है
यही सामूहिक शक्ति किसी की रक्षा करने में लगाए
तो कोई निर्भया इन दुराचारियों के दुष्कर्म का शिकार नहीं होगी
हर हाल में खुश है फिर भी लोगों को तकलीफ है
फुटपाथ पर बैठी हुई महिला
हाथ में आईना लिए सज- संवर रही मेकअप कर रही
खुश होकर निहारता उसका साथी
ये लोग फुटपाथ के रहिवासीहै
यही रैन- बसेरा है
कुछ और परिवार भी रह रहे हैं
किसी के यहॉ खाना बन रहा है
कोई चाय पी रहा है
कोई मंजन कर रहा है
बच्चे खेल रहे हैं
सब कुछ फुटपाथ
यही इनका आशियाना
रसोई से लेकर शौचालय
राहगीर बच- बचाकर निकल रहे हैं
कोस भी रहे हैं
चलना दूभर कर रखा है लोगों का
पर क्या वास्तव में आराम और खुशी से है
इनकी भी तो इच्छा होगी अपने घर में रहने की
दर- दर भटकना कौन चाहेगा??
पर यह तो मजबूरी है
पर खुश रहना तो कोई गुनाह नहीं
हर हाल में खुश है
पर फिर भी दूसरों की ऑख की किरकिरी है