Wednesday, 27 August 2025

हर की अपनी ....

हर की अपनी व्यथा
हर की अपनी कथा 
हर की अपनी चाह 
हर की अपनी राह
हर की अपनी उलझन
उसकी आस पर हर की सुलझन

बदलाव की आंधी

वह घर - गलियां वीरान है 
जहाँ कभी रिश्ते बस्ते थे 
हंसते - खिलखिलाते थे 
छत पर चढ़ दूर से बतियाते थे 
वह पड़ोसी नहीं होता था
अपना होता था 
हर सुख दुख में काम आता था
हमेशा प्यार ही बरसता हो ऐसा भी न था
लड़ाई भी होती रहती थी 
मनमुटाव बस कुछ समय का 
बिना बोले तो चैन भी न आता था 
बच्चों पर तो सबका हक बनता था 
बेटियां भी सबकी होती थी 
दामाद तो पूरे मोहल्ले का होता था 
तरक्की होती गई 
रिश्ते संकीर्ण होते गए 
विकास की आंधी आई
सब छिन्न भिन्न कर गई 
अब तो कोई किसको नहीं जानता 
बात करना तो दूर
मुस्कान भी मुश्किल 
तीज-त्यौहार पर भी सब सिमटे हैं अपने में 
एक जीवंत गली - रास्तें अब सुन्न पड़े हैं
अब वह बात नहीं रही 
बदलाव की आंधी ऐसी चली
सबको अपने साथ समेट ले गई 

यह हार भली है

जीतने में तो खुशी होती ही है 
हारने में भी खुश होना 
बल्कि मौका मिले तो जान बूझकर हार जाना
वह अपनी संतान से 
अच्छा लगता है 
गर्व और गुरुर होता है 
जब वह हमसे आगे निकलती है 
जिंदगी की रेस में हम उसे सबसे आगे देखना चाहते हैं
अपने से भी 
उस खुशी को बयां नहीं कर सकते 
भावनाओं का खेल हैं
यह वही समझेगा 
जो हारा है 
हंसना आता है 
जब वह हमें सिखाती है 
कुछ भी आता नहीं है या अक्ल ही नहीं है 
वह भी सुनने का मजा 
नहीं जीतना है उससे 
यह हार भली है प्यारी है

Sunday, 24 August 2025

घर बनाया

घर बनाया सपनों का 
सोचा था 
मन - मुताबिक सजाएंगे
आराम से रहेंगे 
मेहमानों की आवभगत करेंगे 
क्या पता था 
हम स्वयं मेहमान बन जाएंगे 
कर्ज का बोझ चुकाते रहेंगे 
घर - द्वार छोड़कर कहीं दूर जाना पड़ेगा 
यही आजकल की कहानी है 
हर युवा उलझा है 
भाग रहा है सपनों के पीछे