Friday, 1 August 2025

वर हो तो शिव सा

श्रावण का महीना 
शिव जी की आराधना 
हर कन्या की मनोकामना 
शिव जी जैसा वर
क्यों ??
राम ,कृष्ण,  विष्णु जैसे क्यों नहीं 
जो कैलाश पर विराजे हैं महलों से दूर 
सर्प हैं गले में 
राख - भभूत मले हैं शरीर में 
क्रोध में उनसे किसी का मुकाबला नहीं 
औघड़ हैं वे फिर भी प्रिय हैं 
एक बात तो हैं उनमें जो सबसे अलग है 
वे न पैर दबवा रहे हैं विष्णु की तरह 
उन्होंने पत्नी को नहीं त्यागा राम की तरह
वे कृष्ण नहीं कि प्यार किसी से ब्याह किसी से 
वे गौरा को समानता का दर्जा दिए हैं
उनके साथ विराजे हैं 
परिवार के साथ हैं 
भले सब का स्वभाव अलग - अलग हो 
वे तो नंदी , सांप , बाघम्बर,  शीतल गंगा , चंद्रमा के साथ हैं 
किसी को अपने गले में धारण किया है 
किसी को सर पर बिठाया है 
शक्ति होकर भी भोले हैं 
जल्दी प्रसन्न होते हैं 
पत्नी को और कुछ नहीं पति का साथ चाहिए 
तभी तो वर शिव जैसा हो 
यही तो सब कुवारियां चाहती है 

Wednesday, 30 July 2025

होना है जो

कितना हम डरते हैं 
भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं 
क्या करना है 
क्या नहीं करना है 
किस्मत तो लिखी जा चुकी है 
सब निश्चित है 
हाथ की रेखाएं जन्म के साथ ही आई है 
हम क्या ही कर लेंगे 
कितना हाथ- पांव मार लेंगे 
प्रारब्ध का फल आज 
आज का फल अगले जन्म 
यह सिलसिला जारी रहता है 
बस हम तो कर्म करने आए हैं 
वह तो किए बिना कुछ संभव नहीं 
तदबीर तो हमें बनाना है 
तकदीर बनी हुई मिली है 
तब चिंता क्यों 
जो होना है वह होगा ही 
होइहै वही जो राम रचि राखा 

ईश्वर ने क्या दिया

ईश्वर ने मुझे कुछ नहीं दिया 
मेरी जिंदगी मे ही ऐसा क्यों है 
हमेशा मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है
ऐसी शिकायत गाहे - बगाहे रही है 
आज अचानक मन में आया 
ईश्वर ने मुझे दिया क्या है यह सोचा 
पता चला कि 
उन्होंने मुझे क्या कुछ नहीं दिया है 
सब कुछ तो दिया है 
मैं जिस लायक हूँ उससे कहीं कुछ ज्यादा 
चारों तरफ नजर उठाकर देखा 
चिंतन-मनन किया 
ऐसा लगा मुझसा कोई नहीं 
न जाने कितनी दुर्घटनाओं से बचाया है 
नहीं तो आज मैं जहाँ हूँ 
जैसे हूं रह नहीं पाती 
कर्म,  प्रारब्ध भी तो कुछ है 
वह भी तो साथ चलता है 
मन में प्रश्न आना स्वाभाविक है 
आज तक रोना आता था 
आज अचानक हंसी आ गई 
कितना कुछ दिया 
जिंदगी हर मोड़ पर आसान बनाया 
मुश्किल काम हल हो गए 
शुक्रिया तो बनता है 
हाथ जोड़कर प्रार्थना
ऐसी ही कृपा बनाए रखना 
ऐसा नहीं है कि अब शिकायत नहीं होगी 
ओ तो होता ही रहेगा 
हक बनता है हमारा 
तुम्हीं तो सर्वस्व तो फिर कहना भी तो तुमसे ही 

Tuesday, 29 July 2025

दुनिया का मेला

दुनिया का दस्तूर निराला 
कहीं धूप कहीं छाया
सबमें बसी है माया 
घूमती- घूमाती रहती यह काया
पेट का जंजाल है 
तभी तो सब परेशान हैं
भोर तड़के उठाती 
काम पर लगाती 
दिन - रात खटवाती 
कभी चैन से न बैठती - बैठाती 
आगे निकलने की होड़ मचाती 
चैन से न जीने देती 
सुकून और आराम तो न जाने कहाँ गायब करती 
बस भगाती और भगाती 
सब भाग रहे हैं 
दौड़ रहे हैं 
छलांग लगा रहे हैं 
गिर - पड़ रहे हैं 
यह अपने करतब दिखला रही है 
मकड़ी के जाल सा खुद के बनाए में खुद फंसा 
दुनिया का मेला 
मेले में हर कोई अकेला