Wednesday, 17 September 2025

यह समर है

राह में कंकर - पत्थर न हो 
समतल - सपाट हो 
बाहर धूप न हो 
हमेशा छाया ही रहें
ऐसा अमूनन होता नहीं 
हम सोचते हैं 
जो होता नहीं 
कभी मन के अनुसार 
कभी विरुद्ध 
जाना पड़ता है
यह मजबूरी है 
जरुरत भी है 
पैर में छाले भी पड़ेगे 
पसीने से तर-बतर भी होगे 
चलना तो फिर भी है 
मंजिल पर जो पहुंचना है 
थक - हार बैठना 
यह जिंदगी का उसूल नहीं 
यह समर है 
इसे लड़ना ही पड़ेगा 

Tuesday, 16 September 2025

सजीव - निर्जीव

मैंने सोचना बंद कर दिया है 
मैंने बोलना बंद कर दिया है 
मैंने प्रतिक्रिया करना बंद कर दिया है
क्या कहना क्या सुनना 
सब व्यर्थ है 
मुझ पर किसी बात का असर नहीं पड़ता 
जो हो रहा है होने दो
मुझे किसी से क्या मतलब
मैं भावनाओं में नहीं बहना चाहती 
कोई सम्मान करें या अपमान करें 
क्रिया की प्रतिक्रिया स्वाभाविक है 
आग में हाथ डालेंगे तो जलना होगा 
यह जीवित का प्रमाण है 
विचार शून्य इंसान 
जिंदा शरीर में मुर्दा है 
सांस भले ही चल रही हो 
सजीव तो है 
उसमें और निर्जीव में क्या फर्क 

पाऊस आला मोठा

आ जा आ जा आ जा 
जा जा जा जा जा 
ये हैं बरसात राजा 
कभी आगमन की प्रतीक्षा
कभी जाने की गुहार 
न आए तो मुश्किल 
ज्यादा आए तो मुश्किल 
जीवनदाता भी ये
विनाशक भी ये 
न आए 
तो न जाने कितनी मन्नते 
कितने प्रलोभन 
कभी यज्ञ तो कभी हवन
ये किसी की नहीं सुनते 
अपनी मनमर्जी करते 
न आए तो सूखा
आए तो सुनामी
हर जीव को इनकी प्रतीक्षा
पेड़ - पौधे , पशु- पक्षी 
मानव तो है ही 
हर्षित भी करते हैं 
रुलाते भी हैं
पपीहा तो प्राण भी दे देता है 
मेढ़क की टर्र टर्र भाती है 
जब बरसात हो झर - झर
कुछ भी हो 
आना - जाना इनकी मर्जी 
प्यारे भी सबके 
इनसे मुख नहीं मोड़ सकते 
तभी तो गाना बालपन का
ये रे ये रे पावसा 
तुला देतो पैसा 
पैसा झाला खोटा 
पाऊस आला मोठा 

धैर्य रखें

बारिश होगी तब मोर नाचेगा 
वह भी उसकी इच्छा
फसल तैयार होगी 
अपने उसके समय पर
चाहे कितना खाद - पानी दें
बरसात होगी 
ऊपर वाले की इच्छानुसार 
किसान पर नहीं
आपकी इच्छानुसार कुछ हो तो अच्छा है 
न हो तो धैर्य रखने के सिवाय कुछ नहीं 
यह नहीं तो वह सही 
जो अपने हाथ में नहीं 
तब क्या 
वह ऊपर वाले पर
नियति पर
भाग्य पर
क्या पता था 
जिसका सुबह राज्याभिषेक होने वाला था
उसको 14 वर्ष के लिए वनवास 
जंगल- जंगल भटकना पड़ा
धैर्य रखें
माली सींचे सौं घड़ा 
ऋतु आए फल होए