Thursday, 20 March 2025

मैं गौरेया

मैं आपकी वही छोटी सी गौरैया हूँ 
जो ची ची कर आपके घर को गुलजार रखे रहती हूँ 
मुझे आपसे शिकायत है 
अब आप अपने घर में मुझे रहने नहीं देते 
मिट्टी का घर छोड़कर ईंट - गारे का घर बना लिया 
गगनचुंबी ईमारतें खड़ी कर दी 
मेरा ख्याल नहीं किया 
पेड़ को भी तो काट डाला 
वह भी तो नहीं बचा 
बस आप अपना सोच रहें 
हम भी आपका परिवार हैं 
हमारे बारें में भी सोचा होता 
अपने घर में एक कोना हमारे लिए भी रखा होता 
पर आपने ऐसा नहीं किया 
पहले मैं आपको जगाती थी 
अब अलार्म घड़ी जगाती है 
आप अपने लोगों से दूर 
मशीन के नजदीक हो गए हैं
मन भी वैसा ही हो गया है 
पहले मेरा भी ख्याल रखा जाता था 
दाना - पानी रखा जाता था 
अब तो आप अपनी ही सोच रहें 
मेरा घर भी उजाड़ कर फेंक दे रहे हैं 
इसलिए मैं भी अब आपसे दूर- दूर जा रही हूँ 
जीना तो मुझे भी है 
अगर आपको मुझसे सच में प्रेम है 
तब मेरे लिए भी कुछ कीजिए 
मैं आपके साथ ही रहना चाहती हूँ 

आजकल के रिश्तें

रिश्ता अब पहले जैसा नहीं
न उनमें वह मिठास 
आज अपनों में प्रेम नहीं दिखता 
दूरी बन रही है 
बेगानों से नजदीकी हो रही है 
वह प्रेम कहाँ गया ??
क्या दिल , दिल नहीं रहा 
आदमी मशीन रह गया है 
पशु तो नहीं कह सकते 
प्रेम तो उनमें भी होता है 
वह भी झुंड में रहते हैं 
अब दिल तो है पर उसमें दिमाग बस गया है 
वह लाभ- हानि देख रहा है 
इनसे जुड़ने में कुछ लाभ है या नहीं 
बड़ों - छोटों का आत्मीय संबंध विलुप्त 
हैसियत के अनुसार आंका जा रहा है 
छोटी - छोटी बातों को बड़ा बनाकर पेश करना 
कुछ न कुछ कारण या बहाना बना दूरी 
खुशी में न खुशी न दुख में दुखी 
अपने ही होकर मजाक बनाना 
ये तो अपने ही हैं क्या कर लेंगे 
इतना भी मत करो कि फिर नजदीक न आ सको 
अपनों को पहचानो 
उनके दिल में झांको 
दिल में जो प्यार का झरना सुसुप्त है 
उसमें रस भरो 

Wednesday, 19 March 2025

मैं समुंदर हूँ

गहरा हूँ सब कुछ समाता हूँ अपने में
फिर भी शांत रहता हूँ
परीक्षा मत लो मेरी
अगर अपने पर आ जाऊं 
तब तो किसी की खैर नहीं 
मैं तो अपनी सीमा में रहता हूँ
विशालता ही मेरी पहचान
न जाने क्या क्या समेटे हुए अपने में
मैंने न जाने कितने युग देखे हैं
इतिहास गवाह है
मैं कभी अवांछित को अपने में समाता नहीं
बाहर किनारे पर फेंक देता हूँ
जब तक सहता हूँ तब तक ठीक
अन्यथा सुनामी आने में देर नहीं ।
मेरी क्षमता का आकलन करना मुश्किल
मेरी गहराई नापना असंभव
मैं अपने में अमृत और विष दोनों समाएं हुए 
सागर हूँ साग नहीं 
कि मुझसे कैसा भी व्यवहार हो 
मुझे बंधन में बांधा जाए
मेरी सीमा जानने से पहले अपनी सीमा जाननी होगी 
तभी सभी का कल्याण ।

ऐ जिंदगी मेहरबानी कर

ऐ जिंदगी बड़ी शिद्दत से जीया है मैंने 
कभी निराश नहीं किया तुझे
हर कठिनाई और बाधा को पार किया 
तुझे बड़ा प्यार किया
केवल मेरा ही हक नहीं तुझ पर
मेरे अपनों का मेरे बच्चों का मेरी माॅ का 
इसलिए तो कस कर पकड़ी रही 
संभाला , सजाया और संवारा
कुछ दौर ऐसे भी आए 
जहाँ दुखी हुई , उदास हुई 
धैर्य जवाब दिया 
फिर हिम्मत की 
उठ खड़ी हुई 
तुझसे तब भी प्यार था 
अब भी है और रहेगा 
बस तू बेवफा मत होना 
मेरा साथ निभाना 
आज तक मैं पकड़कर रही तुझे 
अब पकड़ कुछ-कुछ ढीली हो रही है 
अब तू पकड़कर रख मुझे 
जीना है अभी बहुत 
सोने की सीढ़ी पर चढ़कर जाना है 
वक्त है अभी तो 
जी लेने दे 
इतनी मेहरबानी तो जरूर कर