Monday, 17 February 2025

दाग

दाग कैसा भी हो 
एक बार लग गया तो लग गया 
कितना भी साबुन - डिटर्जेंट रगड़ो 
जल्दी नहीं छूटता 
छुट भी गया तो कुछ तो निशान रह ही जाता है
वहाँ का रंग थोड़ा फीका सा हो जाता है 
धोते - धोते छुट ही जाता है 
समय लग जाता है 
निशान याद भी नहीं रहता 
दाग कपड़े पर हो या चरित्र पर हो
बहुत संभालना पड़ता है 
अन्यथा उसे बड़ा बनते देर नहीं लगती 
दाग तो दाग ही है
वह कपड़े पर चाय का हो 
या चरित्र पर हो 

प्रेम

बह रहा मुझमें प्रेम का झरना 
कैसे लुटाए कहाँ लुटाए 
प्रेम देना ही नहीं प्रेम लेना भी आना चाहिए 
सबके बस की बात नहीं
स्वार्थ से परे
मोल - भाव 
हिसाब- किताब नहीं 
तुमने क्या दिया 
इतना तो इतना क्यों 
बदले में क्या ??
प्रेम प्रतिदान नहीं चाहता
प्रेम बस प्रेम चाहता है 
दिल में थोड़ी सी जगह चाहता है 
सम्मान चाहता है 
विश्वास चाहता है 
अगर है तब तो कोई समस्या ही नहीं 
एहसान नहीं एहसास हो 
सब कुछ लुटादेने की कुवत हो 
न सोच न गुणा - भाग 
विशुद्ध प्रेम हो 
है ऐसा हो सकता है ऐसा 
प्रेम के झरने में गोते लगाए 
प्रेम की नदी में बेहिचक तैरिए 
लहरों से बिना डरे 
जितना उचिल ले 
अपनी अंजुरी भर लें 
हाॅ यह ध्यान रहें 
उस में उतरना ही होगा
आग का दरिया है पार तो करना ही होगा 

Sunday, 16 February 2025

हमारा अस्तित्व

हमें ऐसा लगता है अक्सर
हमारी कहीं कोई पूछ नहीं है 
हमारी कोई वैल्यू नहीं है 
हमारा अस्तित्व नहीं है 
इससे पहले यह भी सोचे
किसी को आपसे अपेक्षा है क्या
किसी को आपसे शिकायत है क्या
किसी को आपको देख चेहरे पर मुस्कान आती है 
किसी के आंखें भर आती है
किसी को आपका इंतजार रहता है क्या
कोई आपसे नाराज है क्या
कोई आपसे गुस्साया हुआ है क्या
कोई आपको टोका टोकी करता है क्या
यहाँ तक कि कोई आपसे नफरत करता है क्या
किसी को आपसे ईष्या है क्या 
तब तो समझ लीजिए 
आप महत्वपूर्ण हैं 
हम लोगों से जुड़े हैं
यह सब इसलिए 
कि हमारा भी अस्तित्व है 

वे लोग

वे लोग वे पल
वह साथ बिताए क्षण
जेहन में सब हैं 
कुछ हैं कुछ नहीं
कुछ इस जगत में
कुछ रुखसत कर दूसरी दुनिया की सैर पर 
सफर जिंदगी का साथ चला था उनके 
यादों में ताजा अब भी 
वह अपनापन 
वह प्यार 
वह नोक-झोंक 
कुछ भी तो नहीं भूला 
आज सब अपनी अपनी राह
कभी हमराह थे 
सफर को साथी थे 
सुख - दुख बांटा था
साथ बैठे हंसे - खिलखिलाएं थे 
कभी नाराज तो कभी मनुहार होता था 
कभी हक जताया तो कभी गले लगाया
हर समस्या को मिल जुलकर सुलझाया 
अपना कौन पराया कौन 
जवानी जिनके साथ गुजारी 
दिन के आधा उनके साथ बिताया 
सहमित्र- सहकारी हमारे 
हम न भूल पाएं उन्हें 
सही है वह और सटीक भी
   लो भूली दास्तां फिर याद आ गई