Monday, 17 February 2025

प्रेम

बह रहा मुझमें प्रेम का झरना 
कैसे लुटाए कहाँ लुटाए 
प्रेम देना ही नहीं प्रेम लेना भी आना चाहिए 
सबके बस की बात नहीं
स्वार्थ से परे
मोल - भाव 
हिसाब- किताब नहीं 
तुमने क्या दिया 
इतना तो इतना क्यों 
बदले में क्या ??
प्रेम प्रतिदान नहीं चाहता
प्रेम बस प्रेम चाहता है 
दिल में थोड़ी सी जगह चाहता है 
सम्मान चाहता है 
विश्वास चाहता है 
अगर है तब तो कोई समस्या ही नहीं 
एहसान नहीं एहसास हो 
सब कुछ लुटादेने की कुवत हो 
न सोच न गुणा - भाग 
विशुद्ध प्रेम हो 
है ऐसा हो सकता है ऐसा 
प्रेम के झरने में गोते लगाए 
प्रेम की नदी में बेहिचक तैरिए 
लहरों से बिना डरे 
जितना उचिल ले 
अपनी अंजुरी भर लें 
हाॅ यह ध्यान रहें 
उस में उतरना ही होगा
आग का दरिया है पार तो करना ही होगा 

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