भोपाल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन हुआ और उसमें प्रधानमंत्री ने भी शिरकत की ,यह अच्छी बात है ,ये पहले प्रधानमंत्री है जो हिन्दी को इतनी तवज्जो दे रहे है
हिन्दी को क्यों हीन भावना से देखा जाता है अगर हम अंग्रेजी गलत बोले तो कोई बात नही पर हिन्दी सही बोले तो भी हँसी के पात्र
हिन्दी मे लोगो को जोडने की शक्ति है तो वह सम्मान और रोजगार की भाषा क्यो नही बन सकती
इसमें सरकार की बडी भुमिका हो सकती है
विदेशो में जहॉ हिन्दी को विश्वविधालयों में स्थान दिया जा रहा है वही हमारे देश में बंद हो रही है
आज हर व्यक्ति अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढाना चाहता है
हमारी फिल्म इंडस्ट्री हिन्दी के कारण ही फल फुल रही है पर बात करते समय ऐसा लगता है कि उनको हिन्दी आती ही नही
जो भाषा रोजी रोटी दे रही है उसे वे जानते नही
नई पीढी भी हिन्दी का उपयोग नही करना चाहती.
क्या मजबूरी है कि हमारी भाषा खत्म होने के कगार पर पहुंच गई है
जब तक इसको रोजगार ,बाजार, विग्यान,अर्थशास्त्र से नही जोडा जाएगा तब तक यह आगे नही बढेगी
ऐसा न हो कि आज जो सिसक रही है कल बचे ही नही
ईसलिए नये तरीके अपनाना ,नये शब्दों को ग्रहण करना,आसान शब्दों का इस्तेमाल और रोजी रोटी से जोडना तभी हिन्दी का असतित्व कायम रहेगा
हम भी तब गर्व से कहेंगे
हम हिन्दी है
हिन्दी हमारी पहचान है
हिन्दी हमारी कमजोरी नही ताकत है
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