वृद्धावस्था की समस्या आजकल मुँह बाएँ खडी है
इसके लिए केवल नई पीढी ही जिम्मेदार नही बल्कि पुरानी पीढी भी
वृद्ध अपनी सोच और मानसिकता बदलना नही चाहते
और युवा बिना किसी रोक -टोक के पूर्ण स्वतंत्रता चाहते हैं यही से टकराव शुरू होता है.
भारत में प्राचीन काल में जीवन को चार भागो में बॉटा गया था जहॉ पचास साल के बाद व्यक्ति संन्यासी जीवन में प्रवेश करता था नई पीढी को सारी जिम्मेदारी सौंपते हुए
लेकिन आज सत्तर साल का वृद्ध भी जवान है और अपने हिसाब से सबको चलाना चाहता है
पीढियों का टकराव तो पहले से चलता रहा है लेकिन आजकल ज्यादा
कोई एक दूसरे के साथ सांमजस्य नहीं करना चाहता
बुजुर्गों को भी सोचना चाहिए
उन्होंने अपनी जिन्दगी तो जी ली तथा अपने भविष्य की भी तैयारी कर के रखे
किसी पर बोझ न बने
जन्म देने का मतलब किसी के जीवन का मालिक नहीं होना है
जिन्दगी जीने दे उनकी मर्जी जैसै और अपनी भी शांति पूर्वक जीए
याद रहे कि खुद का शरीर साथ नहीं देता तो दूसरे से कैसे उम्मीद कर सकते हैं
बच्चे भी बुजु्र्गों को सम्मान दे
आपके जीवनदाता है जो प्रेम उन्होंने आपको दिया है उतना तो नहीं पर कुछ तो दे ही सकते हैं
दोनों ही एक दूसरे को समझे तभी समस्या का समाधान हो सकता है
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