Thursday, 21 January 2016

कब तक जाति और धर्म की राजनीति होगी

आपसी लडाई झगडा या खेल या फिर कानून का उलंघन
हर जगह जाति और धर्म का रंग चढा दिखाई देता है
अगर लडाई दो पडोसी या दोस्तो में हो और भगवान न करे अगर वे दो अलग धर्मों या जातियों के हुए तो वह अग्नि का रूप धारण कर लेती है
दलित छात्र अगर आत्महत्या कर ले तो वह राजनीति और दूसरे वर्ग का हो तो उसका किसी को एहसास भी नहीं
मुस्लिम आंतकवादी को फॉसी हुई तो बवाल
वह नायक बन जाता है
गॉधी जी को गोली मारी गई तो कोई बवाल नहीं हुआ क्योंकि मारने वाले नाथूराम गोडसे हिन्दू थे
वही इंदिरा गॉधी की हत्या पर सिखो पर जुल्म ढाया गया और आग में झोका गया  क्योंकि मारनेवाले सिख धर्मावंलबी थे
सिक्खो की देशभक्ति पर संदेह किया गया .
कातिल तो कातिल होता है कोई धर्म और जाति तो उसे नहीं सिखाता
अगर अपराध होगा तो अपराधी को सजा तो मिलेगी
कानून और न्याय व्यवस्था जाति और धर्म तो नहीं देखता
अगर छात्र गलती करेंगे तो जो सजा का प्रावधान है वह तो उनके लिए भी होगा
नेता गण भी इसके लिए जिम्मेदार है
उन्हें इस दलगत और धर्म गत राजनीति से ऊपर उठना चाहिए

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