लक्षमी और सरस्वती दोनों एक जगह नहीं रहती
यह पुरानी मान्यता थी
पर आज ऐसा नहीं है समय बदला है
फिर भी कुछ नई पीढी जिनको तुरंत पैसा कमाना है
अच्छी जीवन शैली जीना है वे पढाई छोड कमाने की राह पर चल निकलते हैं हॉ यह बात अलग है कि घर की परिस्थिति अच्छी न हो
पर अगर सब ठीक है फिर भी?
मुझे रेल में सफर करते हुए एक लडकी मिलती थी
हर रोज एक ही डब्बे में सफर करते हुए जान पहचान हो गई
मैं समझ रही थी कि पढाई कर रही होगी
एक दिन ऐसे ही पूछ लिया ,जो उत्तर मिला सुनकर अवाक रह गई
मेरे पूछने पर कौन से कॉलेज में तो उसने उत्तर दिया ऑटी मैं जॉब करती हूँ
मैंने कहा कि तुम्हारी पढने की उम्र है तो उसने कहा
पढकर भी तो नौकरी ही करनी है ज्यादा पढकर क्या करना है आप ने तो इतनी पढाई की है पर मेरी तो तनख्वाह आपके जितनी ही है
बात सही भी थी कॉल सेंटर वगैरह में काम करते उनको अच्छी सैलरी मिल जाती है
पर पढाई का मोल पैसों से?
यह बात अभी समझ नहीं आती है पर बडी पोस्ट तक पहुंचने के लिए योग्य क्वालिफिकेशन की जरूरत होती है तब पछतावा होता है
शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी तक ही सीमित नहीं है
यह आपके सोचने और समझने की दिशा तय करता है
एक अच्छा नागरिक और व्यक्ति बनाता है
पैसे तो दूसरे गलत मार्गों से भी कमाया जा सकता है
हमारे पूर्वजों ने सरस्वती पूजा का महत्तव और मॉ सरस्वती की पूजा का विधान किया है
कितना भी पैसा हो जाय वह शिक्षा की जगह नहीं ले सकता
एक पढा -लिखा सामान्य आदमी एक पैसों वाले के सामने मजबूती से खडा रह सकता है
पर एक अमीर कितना भी पैसे वाला हो सामना नहीं कर सकता
सरस्वती की ताकत लक्षमी से कम नहीं
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