आज मैं और बेटी जल्दी सुबह उठे ,छुट्टी का दिन था
पतिदेव ने पूछा ,कहॉ की तैयारी हो रही है
अपनी ट्रेन वाली सहेली के घर जा रहे हैं
उसके नए घर का उद्घघाटन है
पति अकसर बाहर ही रहते हैं ट्रांसफर वाला जॉब है दूसरा फोर्स में रहने के कारण हर किसी को शक की निगाह से देखना उनका स्वभाव है ,बडबडाते हुए कहने लेगे इसी तरह किसी दिन कोई ठग लेगा
ट्रेन में कौन सी दोस्ती होती है?
पर शायद मुंबई की लोकल में सफर हर रोज सालोसाल एक ही समय सफर करने वालों की दोस्ती बेमिसाल होती है
यहॉ अपने सुख-दुख बॉटे जाते हैं
जन्मदिन मनाया जाता है
एक -दूसरे को सहयोग किया जाता है
अगर आपकी तबियत खराब हो तो झट से मदद के लिए आगे आ जाते हैं
बच्चो के एडमिशन से लेकर लोगों की नौकरी की सिफारश उपलब्ध हो जाती है
यहॉ तक कि सामान बेचने वालीयॉ भी बिना किसी झिझक के विश्वास पर सामान दे देती है
पैसे बाद में देते रहो
साडी पहनना सीखना हो या आइब्रो सब सहायता मिल जाती है
एक तरह से परिवार की तरह लोग हो जाते हैं
यहॉ तक कि मोटरमैन भी
मुझे याद है कि लोकल का टाइम हो जाता था और मैं कभी -कभी सीढी से उतर रही होती थी तो मेरी बेटी पहले से ही हैंडल पकड कर खडी हो जाती थी
अंकल ,चलाना मत ,मेरी मम्मी आ रही है
बहुत सारे अनुभव और सुख -दुख बॉटे हैं यहॉ तक कि सब्जी वाली से सब्जी लेकर साफ भी की है
एक तरह से मुबई की लाइफ लाइन कहीं जाने वाली लोकल कहीं न कहीं जीवन के हर रंगों से हमारा परिचय करवाती है
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