मैं बंगलूर गई थी हाल ही में
ट्रेफिक तो बहुत थी शाम के वक्त और ज्यादा
पर एक बात देखने लायक थी
कहीं से कोई हॉर्न की आवाज नहीं
कोई कान को फाडने वाला पी- पी ,पो-पो नहीं
सब पंक्तिबद्ध खडे थे आगे का इंतजार करते हुए
मैं मुंबई में रहती हूँ
एक सेंकड भी नहीं लगता भोपू बजाने में
टेक्सी वाले से पूछा कि इतना धीरज.
वैसे हॉर्न बजाना मना है
पर देखा गया है कि कभी- कभी सोसायटी के कंपाउन्ड में भी गाहे - बगाहे हॉर्न बजाते रहते हैं
लोगों की नींद खराब करते है
हॉर्न भी अलग - अलग आवाजों में
इतना ध्वनिप्रदूषण
कम से कम बीमार,वृद्ध लोगों का तो ख्याल रखना चाहिए
कुछ तो टेक्सी वाले ही ढमढमाढम वाला गाना लगा कर रखते हैं .
दूसरे पर उसका क्या असर उससे कोई मतलब नहीं
एक फिल्म में देखा था
साउथ में पानी गिरने की टप- टप आवाज भी ध्यान भंग करती है
और नार्थ में आवाज ही आवाज
सडक,मुहल्ले में गाना बजता ही रहता है
और लोग आने जाने वालों पर फिकरे कसते रहते हैं
आनंद लेते रहते हैं
जरूरी नहीं कि जो एक को आनंद पहुँचाती हो
दूसरे को भी आंनद मिलता हो
देवी का जगराता रात भर चलता रहता है
और रामायण पाठ ,पर उसके लिए सबको सुनाने की क्या जरूरत है
शॉति से बिना लाउडस्पीकर के अपने घर में विधि संपन्न की जा सकती है
स्वयं जीए और दूसरों को भी जीने दे
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