सरकारे आती है ,जाती है, जश्न मनाती है
कभी चुनाव जीतने पर ,कभी हिसाब -किताब बताकर
विज्ञापन पर विज्ञापन ,हर कोई होड में
एक -दूसरे से आगे निकलने की
हमने यह किया ,हमने वह किया ,उन्होंने कुछ नहीं किया - सारा विकास हमारे आते ही
साधारण जनता समझ नहीं पा रही
यह क्या हो रहा है
सजावट ,मंच ,विज्ञापन
इनकी जरूरत ,जनता की आवश्कताओं से ज्यादा है क्या?????
करोडो रूपए खर्च हो रहे हैं
बिजली की कमी है लेकिन पांडाल चमचमा रहे हैं
पानी की कमी है लेकिन बेहिसाब पानी बहाया जा रहा है
किसान शहर की ओर पलायन कर रहे हैं या
फिर स्वर्ग की तरफ
कृषि प्रधान देश कुर्सी प्रधान देश बन कर रह गया है
समाजवाद ,परिवारवाद बनकर रह गया है
सडक पर सत्याग्रह कर सत्ता में आए लोग टेलीविजन पर आने में लगे हैं
धर्म निरपेक्षता पार्टियों में सिमट कर रह गई है
दलित राजनीति ,धर्म की राजनीति ,आरक्षण की राजनीति
विकास की बात तो सब करते हैं पर चुनाव आते - आते सब अलग-अलग लोगों को रिझाने में लग जाते हैं
गिरगिट की तरह रंग बदला जाता है
भाषण देने में माहिर नेता जोश में ऐसा कुछ बोल जाते हैं ताकि आपसी दुराव पैदा हो जाय
राजनीति के नाम पर कुछ भी कर सकते हैं
एक - दूसरे को कोसने वाले गले मिल जाते हैं
जनता को ही डराने लगते हैं
स्वयं को सेवक नहीं स्वामी समझने लगते हैं
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