कैकयी जो रामायण की सूत्रधार बनी
समय ने कैकयी को सम्मान से वंचित कर दिया
कैकयी ने क्या गलत किया था
वह एक मॉ थी वह भी भरत जैसे बेटे की
राजा दशरथ की तीसरी पत्नी भले ही हो पर सिंहासन बडी रानी के और बडे बेटे को ही मिले
यह मंजूर नहीं था रानी कैकयी को वह भी बिना उससे पूछे ,राम को तो सबसे ज्यादा प्यार करती है क्या आपत्ति होगी
प्यार करना अलग और अधिकार अलग
वह और रानियों की तरह कठपुतली नहीं थी बल्कि वह वीर योद्धा भी थी
राजा दशरथ के साथ युद्ध में भाग लेने पर ही वह दो वर प्राप्त हुए थे .
अधिकार तो मैं किसी भी कीमत पर हासिल करूंगी और हुआ भी वही.
राजा दशरथ को अपने प्राण गँवाने पडे
कैकयी को स्वयं के बेटे से अपमानित होना पडा
भरत का सिंहासन पर बैठने से इन्कार
वह नारी जो भरत जैसे बेटे की मॉ हो
राजा दशरथ की जीवनसंगिनी हो.
युगों तक समाज की अनादर का पात्र बनी
राजा दशरथ के कर्म बोल रहे थे
नियती अपना खेल ,खेल रही थी,कैकयी नहीं
आज भी समाज बेटी का नाम कैकयी नहीं रखता
पर आज कैकयी बनने की जरूरत हर बेटी को है
अपने अधिकार के लिए लडना भले सारा समाज विरूद्ध हो
कैकयी न होती तो गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस न होती
राम मर्यादा पुरूषोत्तम न होते
राम के जीवन और उन्हें महान बनने का अवसर रानी कैकयी ने दिया
भरत जैसे निस्वार्थी बेटा रानी कैकयी के पालन - पोषण का परिणाम था
नहीं तो राज्य पाने के लिए लोग क्या नहीं करते
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