Friday, 3 June 2016

अंको का खेल - परीक्षा

वैसे तो जीवन ही परीक्षा है
कदम - कदम पर परीक्षा
जीवन की पाठशाला में यह क्रम बचपन से ही शुरू हो जाता है
सीखना और पढना के अलावा और भी बहुत कुछ किया जाता है
अपने को  साबित करना होता है
जिंदगी की जंग शुरू हो जाती है
सब एक साथ ही पढते और सीखते है
हॉ लेकिन परिणाम अलग- अलग
कोई प्रथम तो कोई का पचासवॉ अंक
कुछ सफल भी नहीं हो पाते है
इसका मतलब यह नहीं कि वे कुछ भी नहीं
ईतिहास ऐसे लोगों से भरा पडा है
ऐसे लोगों ने अलग- अलग क्षेत्रों में अपना परचम लहराया है
चाहे वह खेल हो ,विज्ञान हो या कम्पयूटर हो
हर बच्चा अपने में अनोखा होता है
एक विशेषता के साथ जन्मता है
उसकी कदर करना चाहिए
न कि उसको उपेक्षित दृष्टि से देखना.
उसको अहसास दिलाना कि यह अंतिम पडाव नहीं है
उसका एक भाग है
जीवन बहुत मौल्यवान है
और उसको परीक्षा और अंको में नहीं मापा जा सकता
यह उसके नाजुक मन को बताना होगा
उसे हौसला देना और नया जोश निर्माण करना
यह समाज और परिवार की जिम्मेदारी है
उसकी काबिलियत को निखारना ,
मायूस नहीं होने देना है
यह वे सितारे है जिनसे सबको उम्मीद है
और अपनी उम्मीदो को संजोना सबको है
हमारा भविष्य मौत के मुंह में जाने के लिए नहीं है
आप जमीन से उगने वाले हर तिनके को नमन कीजिए
कौन जाने कौन- सा तिनका कब वृक्ष का रूप धारण कर ले       यानि
आप हर बच्चे को  सम्मान दीजिए
कौन जाने बडा होकर वह कितना महान बने

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