कभी सुना है अंधेरे ने सुबह न होने दी
बुराई ने अच्छाई को हराया
और असत्य ने सत्य को
देर तो होती है पर फैसला तो वक्त करता ही है
हर रात की सुबह तो होती ही है
सत्य भी पराजित नहीं होता
देर हो सकता है पर अंधेर नहीं
उसकी लाठी का वार सब पर होता है
उसके दरबार में कोई भेदभाव नहीं
वह तो समदर्शी है
राजा और रंक सबके लिए एक समान
घट- घट वासी है वह
उसकी मर्जी के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता
हर जीव में वास है उसका
न्याय तो वह करता है ऊपर बैठकर
हम तो नाचते हैं कठपुतली बनकर
नचाने वाला तो कोई और है
हम गलतफहमी में रहते हैं
जबकि हम ही नश्वर है
और सब कुछ ईश्वर है
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