Saturday, 6 August 2016

सबका एक ही मालिक

सबका जन्म इंसान के रूप में
सब की शिक्षा एक ही समान
सब रहते है साथ- साथ
खेलते ,खाते लडते झगडते साथ- साथ
फिर क्यों होता है दुराव

एक का विवाह तो दूसरे का निकाह
एक जगह पुरोहित तो दूसरी जगह मौलवी
एक जगह प्रार्थना तो दूसरी जगह नमाज
कहीं घंटी बजी तो कहीं अजान
किसी का राम तो किसी का रहीम.
म से मंदिर भी   म से मस्जिद भी
अंत समय दोनों को रूखसत होना है दूनियॉ से
किसी को जलाकर किसी को दफनाकर
माटी को माटी में मिल जाना है

दोनों को खुदा के घर जाना है
जहन्नुम में    या    स्वर्ग में
कर्मों का लेखा  - जोखा तो ऊपर होना है
फिर यह टकराव क्यों
खून की नदियॉ क्यों.
न्याय तो वहीं करेगा
आखिर सबका मालिक एक

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