संबंध सिमट रहे हैं
लोग अपनों और समाज से दूर हो रहे हैं
कोई किसी का हस्तक्षेप नहीं चाहता
परिवार की परिभाषा बदल रही है
हम से मैं - में विचर रहा है
अहम बढ रहा है ,रिश्ते टूट रहे हैं
संबंध बनावट का चोला पहन रहे हैं
अपनों का साथ बोझ लग रहा है
अपनापन खत्म हो औपचारिकता बन रही है
संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार बढ रहे हैं
सबके साथ रहना ऊबाउ हो रहा है
पडोसी से ज्यादा घुलना- मिलना नहीं
रिश्ते दारों से बचकर रहना
बस मिलना है तो होली और दीवाली
और दिन तो याद आ जाए तो मेहरबानी
शादी - ब्याह सामाजिक न हो हो रहे व्यक्तिगत
दिखावा बढ रहा ,पैसे पानी की तरह बहाए जा रहे
अपनों से मिलने से अच्छा लगता है
शॉपिग मॉल में दिन काटना अच्छा
त्योहार रिसार्ट में मनाना अजनबियों के साथ
दोस्तों के साथ
पर घरवालों के साथ नहीं
संबंध इतने सिमट रहे कि बीमार होने पर किसको खबर नहीं
यहॉ तक मरने पर भी नहीं
कोई का किसी से वास्ता नहीं
एक दिन शायद ऐसा भी आएगा
जब चार कंधे पर जाने की जगह अकेले जाएगे
और क्रियाकर्म और श्रंद्धाजली देने के लिए
किराए पर लोग मंगवाए जाएगे
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