Wednesday, 12 October 2016

जीने की कला

जीते तो सब पर जीवन जीने की कला
हर किसी को नहीं आती
कोई रोकर ,कोई हँसकर ,कोई दूसरों को दुख देकर
कोई बोली और ताना मारकर
कोई दूसरों को दुखी देखकर
कोई जलन और ईर्ष्या में ,दूसरों का अपमान कर
कुछ स्वयं में कुढते हुए ,जिंदगी को कोसते हुए
कुछ ईश्वर पर या अपनों पर आरोप- प्रत्यारोप कर
कुछ अंसतुष्ट रह और हाय- हाय कर
कोई बेईमान ,झूठा भ्रष्टाचारी ,लालची बन
पर यही जीवन जीना है क्या???
दूसरों के खुश से खुशी
जलन और ईर्ष्या से दूर
क्षमा और ईमानदारी ,संतुष्ट और मितव्ययी बन
हर घटना ईश्वर का वरदान
दो मीठे बोल ,बोलकर भी तो जीया जा सकता है
जिसने जीवन जीने की यह कला आ गई
उसका जीवन सार्थक हो गया
खाली हाथ आए थे ,खाली हाथ ही जाना है
सब यही छोडकर
तो फिर न क्यों प्रेम से जाया जाय

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