कभी शीरा ,कभी सिवैया ,कभी गुलाब जाम
हर रोज भोजन में भरती में मिठास.
पर इस मिठास वाली के जीवन में भी मिठास कौन भरे
उसका ख्याल कौन रखे
दिन- रात मेहनत ,पसीने से लथपथ
बस दूसरों के लिए भोजन बनाने में जुटी
चेहरे पर तृप्ति के भाव देख तृप्त हो जाती
क्या जाने उसके लिए कुछ बचा या नहीं
या खुरचन पर ही संतुष्ट
रसोई की रानी है वह
अन्नपूर्णा कहलाती है
पर पेट तो उसके पास भी है
जिह्वा का स्वाद और मन तो उसका भी करता होगा
कुछ उसकी भी इच्छा - आंकाक्षा होगी
थाली परोसना और समेटना केवल उसके हिस्से में ही क्यों???
वह तो अपना कर्तव्य तन- मन- धन से करती है
दूसरों का भी तो कुछ कर्तव्य बनता है
कभी मीठा कभी नमकीन से भोजन को स्वादिष्ट बनाने वाली का भी ख्याल रखना है.
वह सही- सलामत रहेगी तो भोजन ही क्यों
जीवन में भी मिठास कायम रहेगी
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