यह बात अक्सर सुनने में आती है
जब कोई व्यक्ति अपनी पत्नी की बात मानता है
और यह घर के लोग ही होते हैं ,जो यह बात कहते हैं
अरे! यह तो जोरू का गुलाम है
आखिर क्यो???
अगर पत्नी की बात सही है तो उसे मानने में हर्ज क्या
मॉ की बात मानी तो योग्य पुत्र और बहन की मानी तो अच्छा भाई पर पत्नी की मानी तो नालायक
अगर घर के काम में हाथ बटाया तो सबकी ऑखों में खटकने लगता है
पत्नी कामकाजी है ,नौकरी कर घर की आर्थिक स्थिति मजबूत कर रही है
तो फिर सारी जिम्मेदारी उसी पर क्यों ??
यहॉ तक की पडोसी भी कहते हैं
अरे वह तो औरतों की तरह घर का काम करता है
बीवी का पल्लू पकडे रहता है
पहली बात तो मर्द घर का काम करना नहीं चाहते
यह क्षेत्र केवल महिलाओं का है
खाना से लेकर बच्चे संभालने तक
और अगर कोई सहयोग करता है तो उसे ताने सुनने पडते हैं
कितने तो कोई देख न ले या आ न जाय
इस डर से चुपके से घर का काम करते हैं
यहॉ तक कि पडोसने भी पीछे नहीं रहती
तुम्हारा क्या है
तुम्हारा तो हसबेन्ड काम कर देगा
पर यह भूल जाती है कि इनके जिम्मे केवल घर का काम है
जबकि कामकाजी के ऊपर दोहरी जिम्मेदारी है
अगर बेटा ,भाई या पति काम करते हैं तो अच्छी बात है
समय बदल रहा है तो समाज को भी अपना नजरियॉ बदलना पडेगा
घर की महिला नौकरानी नहीं है
वह बराबर की हकदार है
वह भी सम्मान की पात्र है
वह केवल सबकी सेवा करने के लिए नहीं
बल्कि स्वयं का जीवन जीने की भी अधिकारिणी है
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