मैं भारतीय किसान ,खेती करना मेरा पेशा
सदियों से यही चला आ रहा
पत्थर तोड कर बंजर को उपजाऊ बनाया
कुएं और पानी के स्रोतों का निर्माण किया
मुझे अपने किसान होने पर गर्व था
मैं अन्नदाता जो था
लोहार ,बढई ,धोबी ,कुम्हार और न जाने कितने
सब प्रतीक्षा में रहते
फसल तो मेरे खेत में होती पर प्रसन्नता सबको होती
क्योंकि सब एक - दूसरे पर आश्रित जो थे
बढई हल बनाता ,लोहार लोहे के औजार बनाता
धोबी कपडा धोता
चूडिहारा ,घसियारा ,मजदूर सब जुडे हुए
यहॉ तक कि बनिया ,सोनार भी
क्योंकि फसल होगी तभी तो खरीदारी होगी
पंडित जी की तो बात ही मत पूछो
उनको तो कथा बाचने और पूजा - पाठ और दक्षिणा का इंतजाम हो जाता
काम के बदले पैसा नहीं, अनाज का लेन - देन होता
सबका पेट भरता.
गर्व होता किसान होने पर
पर आज?????
शहर की ओर पलायन हो रहा
गॉव वीरान हो रहे
खेती करना कोई नहीं चाहता
मजदूर ,कारीगर का अभाव
किसान को तो सबने अकेला छोड दिया
उस पर प्रकृति की मार
क्या करे बेचारा किसान
आज तो अन्नदाता ही है लाचार
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