पीली- पीली ,काली धारीवाली ,सुंदर तितली रानी
आ गई मंडराती खिडकी से
न जाने कहॉ से भटकती ,बगीचा छोड कमरे में
क्लासरूम में बच्चे डरने लगे
हिलने- डुलने ,हो- हल्ला करने लगे
जैसे कोई भयानक जीव जो उन पर हमला कर देगा
वह भी कोमल ,नाजुक तितली
अपना बचपन याद हो आया
एक हम थे जो भरी दोपहरी में तितली पकडने को दौडते
घात लगाकर और धीरे से ताकि हाथ आ जाय
पकडने पर जो खुशी मिलती थी उसका तो जवाब नहीं
आज बचपन डर रहा है
सही भी तो है
क्योंकि उन्होंने तो यह सब देखा ही नहीं है
उनकी दुनियॉ तो चित्रों में ही सिमट कर रह गई है
घर की चहारदीवारी में बंद हो गई है
तितली ,जुगनु ,भौरें तो कल्पना में है
वे तो मशीन के साथ मशीनी जीवन भी जी रहे हैं
कब ,क्या ,कितने बजे ,पूरा टाईमटेबल बना है
तो वह बचपन की स्वतंत्रता और शरारत को क्या महसूस करेंगे
और जीव- जन्तु ,फसले इससे कैसे परिचित होगे
असली जीवन तो उन्हें मिला ही नहीं
कागजों में ही उनकी दुनियॉ सिमटी है
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