Sunday, 9 October 2016

बेटी आई ,खुशहाली लाई

मेरे घर आई एक नन्हीं परी
भोला - भाला मुखडा ,चॉद का टुकडा
हँसती - खिलखिलाती ,दंतपंक्ति बिखेरती
मोती जैसे दॉत ,चॉदनी की बरसात
दादी मॉ की गोद में खेले ,हँसे और रोए
दादी को मिला स्वर्ग का सुख
बेटे की संतान ,गोद में सुख का सौभाग्य
साथ में प्यार भैया कर रहा लाड- दुलार
छोटी सी गुडिया से घर हो गया गुलजार
घर आई खुशियों की सौगात
छोटी सी कली ,घर- आंगन की रोशनी
गूंज उठी किलकारी और हँसी - ठिठोली
छोटी सी यह प्यारी गुडिया
पर हो गई सब पर भारी यह बिटिया
भैया - भाभी की दुलारी ,बुआ की लाडली
सुंदर - सलोनी परी ,बनी घर की रौनक
भैया चहक रहा ,हाथ पकड रहा
हँस रहा ,मुस्करा रहा ,हाथ पकड रहा
भोले मुखडे को निहार रहा
उठने का नाम नहीं ले रहा
बेटी तो है रहती सबकी प्यारी
चहचहाती ,गुलजार करती ,खुशियॉ बिखेरती

दादा जी तो खिलखिला कर हँस रहे

देख रहे दूर से ,चश्में में भी ऑखें चमक रही

हो गए गदगद  एकटक दृष्टि गडाए

ऊपर से जगन्नाथ जी भी दे रहे आशिर्वाद

खुशहाली और समृद्धि का

बेटी बनी सौभाग्य ,हो गए सब निहाल



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