Wednesday, 30 November 2016

सौंदर्य को महकने दो.

जुल्फ घनी लहरा रही ,चेहरे पर घटा बन छा रही
मतवाली हुई जा रही
नीला आकाश ,प्रकृति का सानिध्धय
पाकर ये भी अपना आपा खो रही
घनी काली घटाएं घिर आ रही
नदी बल खाती आगे बढ रही
पूरे शबाब पर उफनती ,सारे बंधन पार करती
न जाने कौन- कौन से मोड से निकलती
इन्हें देख लटाएं भी इतरा रही
अपनी खूबसूरती पर मचल- मचल जा रही
बार- बार आती है ,चेहरे पर छाती है
नयनों को भी ढक लेती है
ओठों पर मस्त अठखेलियॉ खेलती है
अपने - आप पर ही मोहित हुई जा रही
मानो यह भी कह रही हो
हमें बांधो मत ,उडने दो
उडकर सौंदर्य को महकने दो

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