रोना केवल औरतों के खाते में है
मर्द को रोना शोभा नहीं देता
वह बलवान और दिल का मजबूत हेता है
यह धारणा मर्दों के बारे में
पर उसके पास भी दिल होता है
उसे भी दुख होता है
उसे भी रोना आ सकता है
औरते जब चाहे तब फफक - फफक कर रो ले
पर पुरूष नहीं
वह मर्द जो है ,उसकी मर्दानगी खतरे में पड जाएगी
उसे धीरज रखना है
ऑखों में ऑसू नहीं आने देना है
घर के सदस्यों को संभालना है
कौन- सा पिता होगा जो बेटी को बिदा करते समय दुखी न हुआ होगा
किसी के बोलने पर आहत न हुआ होगा
रोने का अधिकार केवल एक वर्ग का तो नहीं है
पर आज यह परिभाषा बदल रही है
वह भी रो रहे हैं और सबके सामने
बिना किसी हिचक के
दिल टूटता है तो ऑसू से अच्छा सहारा कोई नहीं
उनको बह जाने दिया जाय
नहीं तो दब कर वह नासूर बन जाएगे
और पता नहीं क्या रूप ले लेंगे
अब यह बोलना कि
लडका होकर रोता है या मर्द होकर रोता है
छोडना पडेगा
दुनियॉ की बडी शख्सियत
बराक ओबामा से लेकर मोदी तक के ऑखों में ऑसू सबने देखा है
रोने से कोई कमजोर नहीं हो जाता
जो व्यक्ति रो नहीं सकता
अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर सकता
वह सामान्य नहीं असामान्य है
और हमारा सामान्य इंसान बने रहने में ही भलाई है
जब जी में आए रो लेना चाहिए
और दिल को हल्का कर लेना चाहिए
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