एक पूर्व सैनिक ने आत्महत्या की निराश होकर
पेंशन के पैसे सही रूप से न मिलने पर
वह एक सैनिक थे जिसने सीमा पर लडाई कर दुश्मनों की गोलियों का सामना किया हो
और सलफास खाकर मर जाय
इतनी क्या मजबूरी थी
हक की लडाई लडनी चाहिए थी
और मरने का सबूत भी छोड गए है
इसके पीछे कोई साजिश तो नहीं है
किसी ने एक करोड और किसी ने दस लाख की मदद की घोषणा की है
इससे तो आत्महत्या करने के लिए मनोबल बढेगा
जिंदगी समाप्त करना ही अपराध है
कभी कोई छात्र आत्महत्या कर रहा है
कभी किसान आत्महत्या कर रहा है
माना कि कुछ कारण होगे
पर कितने ऐसे हैं जिनकी हालत बद से बदतर है
पर वह भी जी रहे हैं.
आज अगर कई दुर्घटना हो जाती है तो चक्का जाम की घोषणा कर दी जाती है
जब तक मुआवजे का ऐलान नहीं होता
और तोड- फोड ,जलाना अलग
कुछ दुर्भाग्य से बलात्कार जैसी घटना पर हाल ही में तोड- फोड कर न जाने कितना नुकसान
जबकि अपराधी को सजा मिलनी चाहिए
पर उनका पता नहीं होता
किसान तो प्रकृति का मारा होता ही है
आत्महत्या करना तो हल नहीं
क्या कमी है हमारी व्यवस्था में ????
क्या सरकार ,पुलिस प्रशासन और दूसरे विभाग
आत्महत्या या तोड- फोड करने पर ही जागृत होते हैं
फिर यह तो गलत बातों को बढावा देना हुआ
कल कोई लालच में आकर यही काम करेगा
न्याय व्यवस्था को मजबूत करना चाहिए
ठोस उपाय ढूढना चाहिए
मुआवजा कोई ठोस उपाय नहीं है
इससे एक परिवार को आधार मिलेगा पर बाकी का क्या ????
कारण की तह में जाकर समस्या को खत्म करना होगा
बलात्कार की घटना होने पर ,आत्महत्या करने पर ही
सरकार और पुलिस प्रशासन की नींद खुलती है
तो फिर ऐसा ही होगा
और इस पर राजनीति भी होगी
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