Monday, 7 November 2016

मेेरा अकेलापन और मेरा घर

यह अकेलापन मुझे सालता है कभी- कभी
घर आने पर बंद खिडकी - दरवाजे
यही तो मेरे इस एकांत के साथी है
यही घर है जहॉ मैं सुकुन से जी सकती हूँ
रह सकती हूँ ,खा- पी सकती हूँ
अपनी मर्जी मुताबिक हिल- डोल सकती हूँ
यही मुझे सुरक्षा देती हूँ
घर की दिवारे भी लगता मुझसे कुछ बोलती हूँ
एक अपनेपन का नाता जुडा हुआ है
सारे समाज और लोगों से छुपाकर और बचाकर
मेरी सुरक्षा करती है
इस बंद दरवाजे के भीतर मैं पूर्ण स्वतंत्र हूँ
यहॉ मैं जो चाहे सो करू
जैसे चाहे वैसे रहू
जो कपडे पहनना हो वह पहनू
बिना मेकअप ,बिना चप्पल के रहूँ
कहीं भी उठू- बैठू ,कोई पाबंदी नहीं
चप्पल पहनू या नंगे पैर डोलू
शीशे में स्वयं को देखकर हँसू
या तकिए में सर डालकर रोउ
जी खोलकर नाचू- गाऊ
अपने मनपसन्द गाने पर थिरकू
बेसूरी आवाज निकालू
जो चाहे वह खाऊ
सामान कहीं भी ,कैसे भी रखू
कोई फर्क नहीं पडता
क्योंकि यह मेरा अपना घर है
यह मेरे एकांत पलों का साथी है
ये दिवारे मुझसे बतियाती है
यहॉ मैं एकांत नहीं बल्कि घर में और घर के साथ रहती हूँ
अकेली नहीं किसी के होने का एहसास करती हूँ.

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