धरती माता है ,जननी है ,जीवनदायिनी है
कितना कुछ दिया हमें
कितना नखरे उठाए हमारे
हम उसको छलते रहे
वह हमारी हर मांग पूरी करती रही
हमने विकास के नाम पर उसको छलनी कर दिया
उसने उफ तक न की
सहनशक्ति की भी सीमा होती है
हमने जंगल काटे
समुद्र और नदियों को पाटा
हरी- भरी वसुधंरा को विरान कर दिया
सब जीव तो उसी के बेटे है
फिर वह पक्षपात कैसे सहती
पशु - पक्षी ,जंगल सब पर प्रहार
उसका सबसे प्रिय पुत्र मानव ,इतना निर्दय
इतना स्वार्थी ????
अपनी ही जननी को नुकसान
पर अगर मॉ ने अपना प्रंचड रूप धारण कर लिया
तब तो पूर्ण विनाश
समय है अभी से चेत जाओ
प्लास्टिक मुक्त
बिजली का दुरूपयोग मत करो
और जननी को बनाओ
सुंदर और सम्मान जनक
स्वच्छता रखो और माता का ख्याल रखो
वह है तभी तुम हो
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