आजकल हर उत्सव जोर- शोर से मनाने की प्रथा चल निकसी है
टेलीविजन सीरियल तो एक उत्सव हप्तों तक मनाती है
जैसे पहले लोग त्योहार नहीं मनाते थे ????
शादी- ब्याह पर भी संगीत और मेंहदी के नाम पर रूपये बहाए जाते हैं
द्रोण कैमरे से तश्वीरे ली जाती है
देवी- देवताओ के आलीशान पंडाल बनाए जाते है
मुर्तियॉ किसकी ,कितनी बडी हो
उसकी होड लग जाती है
रखरखाव और दिखावे में बिजली - पानी और पैसा खूब इस्तेमाल होता है
लाउडस्पीकर बजते रहते है
ध्वनि प्रदूषण होता रहता है
अब तो सरकारे भी इसमें पीछे नही रही है
कोई विकास रथ निकाल रहा है तो कोई सरकार के कार्यकाल के तीन वर्ष होने का उत्सव मना रहा है
यह सब बिना पैसों के तो होगा नहीं
विज्ञापन पर तो पैसे लगेगे ही
जहॉ लोगों को बिजली नहीं मिल रही हो
पीने का पानी न मयस्सर हो
किसान आत्महत्या कर रहे हो
माल न्यूट्रिशन की समस्या
भूखमरी की समस्या
बेकारी ,अपराध ,लूटपाट, बलात्कार
और वहॉ उत्सव
जनता के लिए वह पैसा खर्च हो
समय दिया जाय उनकी समस्या को सुलझाने में
न कि उनको घूम- घूमकर बताया जाय
क्या वह इतनी अनभिज्ञ है के वह काम करने वालों को न पहचान सके
पर बात भी सही है विज्ञापन का जमाना है
विज्ञापन भरमाता भी है
पर वह भी कितनी बार???
सत्य तो बदलेगा नहीं
हिसाब कौन मांग रहा है
अभी तो पॉच साल पूरे भी नहीं हुए
काम कीजिए जनता सर ऑखों पर बिठाएगी
जनता तो ऐसा ही नेता चाहती है
जो उनको दशा और दिशा दोनों दे
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