साडी क्यों है जरूरी
विवाह हो या उत्सव
साडी की शान निराली
इसे पहन कर इठलाती हर नारी
बडी हो या छोटी
इसे पहनती हर औरत
सुन्दरता को निखारती
देहयष्टि में चार चॉद लगाती
पेट ,पीठ ,नाभि का दर्शन करवाती
पर फिर भी यह कहलाती संस्कारी
प्राचीन युग हो या आधुनिक
यह अपना अलग ही छाप छोडती
मोटे को दुबला और दुबले को भरा- भरा बनाती यह
छोटे को बडा दिखाती और बडे को छोटे का अहसास कराती
खूबसूरती में चार चॉद लगाती
सबसे न्यारी ,सबसे प्यारी
पर आज औरतें इसे पहनने में कतराती
अवसर पर तो ठीक है पर हर वक्त
इसके झमेले में कौन पडे
दफ्तर पहुंचना है
रेलगाडी दौड कर पकडना है
जल्दी- जल्दी पैर चलाना है
यह तो इसमें संभव नहीं
यह तो उलझाती है
उस पर पहनने में वक्त लगाती है
इसलिए धीरे- धीरे लोप हो रही है
आधुनिकता के साथ कदम मिलाकर नहीं चल पा रही
दूसरे कपडों से पीछे जा रही है
किसी के पास समय नहीं है
आज साडी जरूरत नहीं मजबूरी बन गई है
पीछे छूट रही है
केवल प्रंशसा की पात्र बन रही है
सही है जो समय के साथ नहीं चल पाएगा
वह पीछे रह जाएगा
फिर वह कपडा हो या व्यक्ति
बदलाव तो युग की मांग है
सती- सावित्री की प्रतीक भर रह जाएगी
सुविधा और नजरिया
दोनों बदलने की जरूरत है
नहीं बदली तो फिर यह प्रदर्शनी की वस्तु बन जाएगी
यह अमूल्य धरोहर है
भारतीयता की पहचान है
इसकी पहचान बनाए रखना जरूरी है
साडी और भारतीय एक- दूसरे का पर्याय है
इसके वजूद को कायम रखना है
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