एकला चलो रे
पर चला जा सकता है क्या??
अकेलापन बहुत सालता है
हर कोई चाहता है कोई तो हो
जो उसका ख्याल रखे
उसके सुख- दुख का भागीदार बने
उसके साथ बैठे
प्रेम से बतिआए
बहुत भाग्यवान होते हैं जिनके साथ कोई होता है
फिर वह चाहे माता- पिता का साथ हो
भाई- बहनों का साथ हो
मित्र का हो ,परिवार का हो या किसी और का
व्यक्ति साथ की तलाश में भटकता है
कभी- कभी धोखा भी खा जाता है
संयुक्त परिवार था पहले
पर वह खत्म हो रहा है
व्यक्ति भटक रहा है अपनी खुशी हासिल करने क् लिए
कभी क्लब में तो कभी रिसोर्ट में
वह भीड में लोगों के बीच रहना चाहता है
पर यहॉ भी तो दिखावा है
लोगों ने जाल बिछा कर रखा है
यह जानते हुए भी वह कदम उठाता है
उसके अंदर का सामाजिक प्राणी जो कुलांचे मारने लगता है
वह भीड का हिस्सा तो बनना चाहता है
पर अपनी प्राइवेसी भी चाहता है
यह सबसे बडी विडंबना होती है
पर मजबूर है वह क्या करे???
अकेला चना भी भाड नहीं फूकता
फिर यह तो जीव है वह भी सामाजिक
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