एक नवयुवक बहुत पढा- लिखा पर बेरोजगार था
नौकरी के लिए दर- दर भटकता पर मनचाही और योग्यता के अनुसार नौकरी नहीं मिली
न जाने कितनी जगह इंटरव्यू दी पर कोई बात नहीं बनी
घर वाले भी ताने देते
पढ - लिख कर घर में बैठना शोभा नहीं देता
वह स्वयं को भी परिवार पर बोझ समझने लगा
छोटी- छोटी जरूरतों के लिए भी हाथ फैलाना पडता
वह बहुत परेशान था
कभी- कभी मन में आता कि जीवन का अंत कर ले
डिग्री तो थी ही पर कहीं सिफारिश का जुगाड न होना
तो कहीं बडी जाति का होना
यह आडे आ जाता था
घर से निकलना भी कम कर दिया
गॉव वाले ताने कसते
इससे तो हम कम पढे- लिखे अच्छे हैं
एक बार की बात है
इंटरव्यू देने दूसरे शहर गया था
वापस लौटते समय इसी विचार में कि
अब तो यह नौकरी मिल जानी चाहिए
हाथ खिडकी पर रखा था
अचानक पास से गुजरती हुई दूसरी बस ने हाथ को क्षतिग्रस्त कर दिया
अस्पताल में भरती करना पडा
हाथ तो बचा लिया गया पर छोटा हो गया
डॉक्टरों ने ऑपरेशन कर जोड दिया था
आज वह नवयुवक बडे पद पर आसीन है
पीछे मुडकर देखते हैं तो लगता है कि
ईश्वर जो कुछ करता है अच्छा ही करता है
अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद फिर अपनी कोशिश जारी रखी
साथ में भगवान को भी कोसते कि नौकरी की बात छोडो भगवान ने मेरा हाथ भी ले लिया
अपंग बना दिया
पर इसी अपगंता ने उनको हेन्डीकेप कोटे में नौकरी भी दिलाई
आज वह सम्मान पूर्वक जीवन जी रहे हैं
और मन ही मन ही ईश्वर को धन्यवाद भी दे रहे हैं
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