Tuesday, 1 August 2017

बेटी का सम्मान , युग का सम्मान

बेटी का सम्मान
देश का सम्मान ,
समाज का सम्मान , युग का सम्मान
उसे गुडियॉ सजाना और संवारना ही नहीं
बाईक ,प्लेन और कार चलाना है
अब खेल- खेल में खाना ही नहीं बनाना है
बर्तन मांजना और चोटी  ही नहीं बनाना है
बल्कि हाथ में बंदूक थमाना है
अब केवल टीचर  - टीचर ही नहीं
सत्ता पर बैठकर काबिज भी होना है
नर्स ही नहीं बनकर सेवा करना है
फौजी भी बनना है
हर क्षेत्र में अपनी पहुंच बनानी है
शुरूवात तो खेल से ही करनी है
उसके हाथ में बेलन नहीं बल्ला थमाना है
पर्वत पर चढाना है ,घर में नहीं बैठाना है
अबला नहीं सबला बनाना है
कंधे को कमजोर नहीं मजबूत बनाना है
उसे भीरू नहीं साहसी बनाना है
उसे आश्रित नहीं आश्रय देने लायक बनाना है
एथलीट और तैराक बनाना है
खतरों से खेलना सिखाइए
मजबूत बनेगी तभी तो अपना परचम फहराएगी
बेटी बनेगी मजबूत तभी तो बढेगी साख
देश की ,समाज की , युग की
युग निर्मात्री बने तब ही तो नये निर्माण की नींव मजबूत बनेगी

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