मैं इस जगह आज जो पहुंची हूं उसका भी एक कारण बाबूजी है दसवीं में तीन बार फेल होने पर भी जो व्यक्ति बिना डाटे प्रोत्साहित करे और वडा - पाव लेकर खाने को दे और फिल्म दिखाने ले जाय वह तो बाबूजी ही हो सकते हैं ,ऑपेरा हाउस में जो भी फिल्म लगती थी हम बाप- बेटी जरूर देखते थे एडमिशन के समय बाबूजी की ही सलाह थी हिन्दी ले और कहानी- उपन्यास पढना ,ज्यादा मेहनत नहीं कर सकती
कल हिन्दी दिवस धा और मेरी प्रिन्सीपल ने मेरी जो प्रशंसा की पूरे स्टाफ और बच्चों के सामने और स्कूल का सबसे ज्यादा इंटेलिजेन्ट व्यक्ति बताया ,तालियॉ भी बजी ,हमारा प्रोग्राम सुपर- डुपर हिट रहा
मुझे मन ही मन हंसना भी आ रहा था , क्योंकि ग्यारहवीं में मैं क्लास में फस्ट आई तो बाबूजी हंस कर बोले
अंधों में काना राजा
लेकिन हिन्दी ने ही मुझे यहॉ तक पहुंचाया ,रोजी - रोटी दी और मान - सम्मान भी दिया
असफलता को सफलता में बदलने का श्रेय बाबुजी को ही जाता है
जीतने वाला ही नहीं हारने वाला भी सिकन्दर होता है
यह साबित कर दिखा दिया
मैं बाबूजी शब्द को छोटा कर बाजी कहती थी और हर बाजी को जीत में कैसे बदलना
यह तो हमने उनसे ही सीखा है
पितृ पक्ष चल रहा है और हम सबने सोचा कि उनको यादों की श्रंद्धाजलि दी जाय
यह तो पानी की कुछ बूंदों के समान है
यहॉ तो पूरा घडा ही भरा है
क्या भूले क्या याद करें .
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