बात बचपन की है जब मैं विद्यालय के मैदान में हिरणी जैसी कुलांचे भरती थी
सारा ध्यान यहॉ - वहॉ
शिक्षिका के टोकने पर कि कहॉ पर खोई है
मन कहॉ की उडान भर रहा है
तब नहीं जानती थी कि किसी दिन मैं आसमान की उडान भरूंगी
वह जमाना और था तब जब यह क्षेत्र केवल पुरूषों का
ऐसे समय में जब लडकियॉ घर से बाहर निकलती नहीं थी तब मैं जमीन से ऊपर उठ आसमान में उडान भर रही थी
देश की पहली महिला पायलट बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ
आसमान में उडान भरते हुए और इतनी ऊंची उठने के बाद भी बचपन की याद नहीं भूली
जिसने इतना कुछ दिया
जीवन की नींव भी यही पडी
विधालय में आने का सौभाग्य मिला तब बचपन जाग उठा
आसमान में उडान भर एकाग्रचित्त होना
यहॉ आकर स्वच्छंद हो गई
जी भर कर और मन खोलकर विचरण किया
यह अवसर को हाथ से जाने देना नहीं चाहती थी
बहुत बडे - बडे जगह पर भले जाना हुआ
पर अपनापन तो यही आकर लगा
मेरा बचपन जो वापस जीवित हो गया था
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