लॉन में बैठी हुई थी
ठंडी हवा चल रही थी
सूर्यदेव का आगमन हो रहा था
सुनहली धूप पसर रही थी
दृष्टि गई एक ऊँचे पेड पर
तन कर खडा था
उससे ऊपर देखा तो गगनचुंबी ईमारतें
पर आसमान का तो कोई सानी नहीं
वह तो सबसे ऊपर , उससे भी ऊपर ग्रह
धरती के भुगर्भ में न जाने क्या - क्या बन रहा
पर उसकी गहराई न जाने कितनी??
हम तो बीच में है
सारे जीवों का तथा सृष्टि कर्ता की रचना
उसकी चित्रकारी तथा समयनियोजन
दाद देनी पडेगी
हम तो केवल निहारते हैं , नष्ट करते हैं
इतनी समृद्ध धरती
इतना विशाल आसमान
इन सबके साथ हमारा ईश्वर
विश्वास रखिए
उसकी कृपा पर , उसके निर्णय पर
कभी संदेह नहीं
जग कर्ता आपके लिए जो भी करेगा
वह आपकी भलाई के लिए ही होगा
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