Thursday, 7 December 2017

अध्यापक जब बन जाय कवि

प्राध्यापक जी आजकल बन गए है कवि
पढाते कम कविता ज्यादा करते
हर बात में कविता और तुकबंदी
छात्रमंडली मजे से सुनती और दाद देती
हर तुकबंदी पर ताली और वाह- वाह
पढना छोड सब कुछ चलता
एक बार प्रोफेसर साहब कक्षा के द्वार पर खडे
अंदर वाली प्रोफसर साहिबा का निकलने का इंताजार
पान चबाते , खंखारते जब अंदर दाखिल हुए
उनको पढाना था उर्वशी , दिनकर जी की रचित
इधर- उधर देखा फिर पूछा
किसी ने उर्वशी पढी है
आजकल कौन पहले से पढता है
और जबसे गाइड आ गई है
तब यह जहमत कौन ले
तैयार उत्तर मिलते है , परीक्षा की तैयारी कर लेते हैं
उत्तर न मिलने पर सरजी ने फिर पूछा
अरे पढा नहीं देखा तो होगा
कक्षा में एक और कवि मिजाज था
भॉप गया तुरंत बोला
हॉ सर , अभी - अभी बाहर निकली है
अब तक सब लोग समझ गए थे , ठठाकर हंसने लगे
प्रोफेसर साहब कवि सम्मेलन में जाते हैं
नाम की खूब चर्चा है
एक - दो रचनाएं  भी छप चुकी है
कॉलेज का नाम भी हो रहा है
सब ठीक है पर इसमें सबसे ज्यादा पीस रहे हैं छात्र
अपने आप पढे , पढना हो तो
कवि महाशय तो प्रसिद्धि प्राप्त कर रहे हैं
और भुगतना छात्रों को करना पड रहा है
कभी उनकी भी व्यथा कवि महोदय सुनाए

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