सत्तर -अस्सी का दशक
रात प्लेटफार्म पर बिस्तर बिछाकर
लाईन मे सोकर गुजरती
महीने से तैयारी करनी पड़ती
गांव जाने के लिए
एक कन्फर्म टिकट लेना
जंग पर जाने जैसा
तब गाड़ी भी कम थी
समय बदला
गाड़ियों की संख्या मे इजाफा
पर हालात और बदतर
दलालों की दलाली
कर्मचारियों की मिली भगत
हाल तो बेहाल ही रहा
अब तो नेट और मोबाइल से
सुविधाओं से लैस भारतीय रेल
पर फिर भी टिकट का सवाल वहीं
आज दो हजार सतरह /अठरह
दशकों का फासला
समस्या जस की तस
उत्तर प्रदेश -बिहार वासी की
यह.समस्या सबसे भारी
कभी तो अच्छे दिन आएगें
पर कब???
यह तो भारतीय रेल ही बता पाएगी
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