आशियाना बनाने मे जिंदगी बीत गई
आज जब बना तो लगा बहुत कुछ पीछे छूट गया
रहते थे किराए के घर मे
हर.वक्त डर सताता
कब परवाना आ.जाय मकान मालिक का
न ज्यादा सामान रख सकते
न इच्छा अनुसार सजा सकते
कहीं न कहीं लगता अपना घर हो
बच्चे बडे होते गए
किराए का घर बदलते रहे
बरसों की मेहनत और जमापूंजी से
घर तो तैयार
अब कोई बंधा नहीं नियमों से
अपना घर है जो
पर जब घर है तो लोग नहीं
सब बडे हो गए
अब खुद का घर बनाएंगे
हम ही अकेले रह गए
घर के साथ
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