जिस देश की पहचान गंगा
जहाँ नदियों को माता की संज्ञा
वहाँ का पानी मैला
नदियां सूख रही
उस पर गगनचुंबी ईमारतें खड़ी हो रही
सागर की सीमा कम किया जा रहा
तो सुनामी का खतरा बढ़ रहा
पर्वत को काटकर पाँच सितारा होटल
पर्वत परवान पर आया
तो सब तहस नहस
जहाँ पीपल पर वासुदेव का निवास
बरगद ,पाकड ,पीपल एक जगह
वहाँ तो साक्षात शिव जी
नीम की दातुन सुबह सुबह
कडवी पर फिर भी जरूरी
कैलाश पर्वत पर ईश्वर का निवास
नाग की शैया पर विष्णु विराजमान
किसी की सवारी चूहा तो किसी का मोर
गौ माता मे तो चौबीस कोटि देवताओं का वास
नंदी बैल के बिना शिव अधूरे
पेड ,पर्वत ,पक्षी ,पशु या सागर
इनसे हमारी संस्कृति की पहचान
गंगासागर मे स्नान कर मुक्ति
पितरों को पिंडदान मे कौए को महत्व
इन सब को हम भूल जा रहे
इन्हें नष्ट कर रहे
आने वाली नस्लों के लिए क्या छोड़ रहे
सींमेट और कांक्रीट के जंगल
इंसानियत बाकी हो तो
जंगल -पेड़ का संरक्षण करें
कुदरत की संरचना का सम्मान करें
कम से कम एक पेड़ तो लगाए
उसी से पानी रूकेगा
फसल होगी और जीवन रहेगा कितना आसान है यह सवाल
इसे सुलझाने मे कोई मेहनत नहीं
बूंद -बूंद को बचाइए
सृष्टि के सृजन को हदय से संभालिए
नहीं तो बिना बूंद के सारी सृष्टि ही खत्म
आँखो के पानी को मरने न दे
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