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एक व्यक्ति अपनी परेशानियों से जूझ रहा था. उसे लगता कि वही संसार का सबसे दुखी व्यक्ति है.
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उसे प्रभु से इस बात की बड़ी शिकायत थी कि प्रभु ने संसार के सारे दुख उसके हिस्से दे दिए और फिर कान में तेल डालकर सो गए हैं.
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सोते-जागते प्रभु से प्रार्थना करता और फिर कभी भगवान को तो कभी खुद को कोसता रहता. भगवान हैं कि न तो विनती से सुन रहे थे और न उलाहने, बेचारा करे भी तो क्या करे ?
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एक दिन उसने सोने से पहले प्रार्थना की- प्रभु आपके सामने कहता-कहता थक गया. अब और मिन्नतों की इच्छा होती नहीं. एक अंतिम बार कह रहा हूं, कृपा करके ध्यान दीजिए.
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यदि आप मेरे दुख मिटा नहीं सकते तो कम से यह तो कर सकते हैं कि किसी ऐसे व्यक्ति के दुखों से मेरा दुख बदल दीजिए जो मेरे से कम दुखी हो. हमेशा के लिए नहीं तो कम से कुछ ही महीनों के लिए कर दीजिए. मुझे भी कुछ राहत मिले.
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भगवान ने उस दिन उसकी आखिर सुन ही ली. उस रात उसे सपने में भगवान दिखे.
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भगवान बोले- मैं तुम्हारी प्रार्थना रोज सुन रहा था पर उनके ऊपर ध्यान ज्यादा दे रहा था जो ज्यादा कष्ट में हैं. खैर, तुम अपने कष्टों को विस्तार से कागज पर लिखो, एक गठरी बनाओ और शहर के मुख्य चौराहे पर टांग आओ.
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व्यक्ति हडबड़ाकर जागा. पहले तो उसे यकीन ही न हुआ कि सच में भगवान ने ऐसी प्रेरणा दी है. फिर सोचा कि आजमाने में क्या हर्ज है. क्या पता इससे कोई हल ही निकल आए.
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उसने भगवान के आदेश के मुताबिक अपनी सारी परेशानियां अलग-अलग कागजों पर लिखीं. इतनी लिख डालीं कि सच में कागज का ढेर खड़ा हो गया और उसे गठरी में ही बांधना पड़ा.
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उसने परेशानियों की गठरी उठाई और चौराहे पर पहुंचा. वहां पहुंचकर वह अचंभे में पड़ गया.
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उसने देखा कि चौराहे पर तो पहले से ही लोगो की लंबी कतार है जो उसी की तरह अपने-अपने दुखों की बड़ी-बड़ी गठरी लिए आ पहुंचे हैं. आखिर चक्कर क्या है ?
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अभी वह इन विचारों में ही खोया था कि तभी आकाशवाणी हुई. उसमें सभी को अपनी गठरी को चौराहे पर लगी अलग-अलग खूंटी में टांग देने का आदेश हुआ.
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वहां बेहिसाब खूंटिंया पहले से ही बनी थी. सभी ने अपनी-अपनी गठरी टांगी और फिर ईश्वर के आदेश की प्रतीक्षा करने लगे.
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कुछ ही देर में फिर से आकाशवाणी हुई. कहा गया कि सभी लोग अंदाजे से कोई ऐसी गठरी उठा लें जो उन्हें अपनी परेशानियों की गठरी से हल्की समझ में आती हो. अब उन्हें वही दुख भोगने होंगे जो उनकी चुनी नई गठरी में दर्ज होंगे.
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आकाशवाणी सुनते ही सभी हल्की गठरी को लपकने के लिए दौड़े. सबके साथ वह व्यक्ति भी नई गठरी चुनने भागा.
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खूंटियों में टंगी गठरियों को घूरता हुआ वह काफी देर तक अंदाजा लगाता रहा. उसे डर था कि कहीं वह कोई ऐसी गठरी न उठा ले जिसमें पहले से भी ज्यादा दुख हों. इस तरह तो लेने के देने पड़ जाएं.
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गलती से भी उसने यदि किसी ऐसे व्यक्ति की गठरी उठा ली जो उससे भी ज्यादा दुखी हो तो फिर उसका जीवन तो और तहस-नहस हो जाएगा.
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अब उसके मन में तरह-तरह के विचार आने लगे. वह सोचने लगा कि कम से कम वह अपने दुखों से परिचित है. उन्हें झेलने का आदी हो गया है. उनके लिए कुछ रास्ते निकालने की शुरुआत भी की है शायद उसका परिणाम आए तो एकाध दुख घट ही जाएं.
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कहीं ऐसा न हो कि नई गठरी में चुने दुख ज्यादा पीड़ादायक हो जाएं.
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ऐसे विचारों में खोया वह एक के बाद एक गठरी के सामने से गुजरता लेकिन तय नहीं कर पाया कि कौन सी गठरी चुनी जाए. उसे यह भी भय होता कि कहीं कोई उसकी गठरी न उठा ले.
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इसी उधेड़बुन में फंसे उसने आखिरकार अपनी गठरी ही उठा ली और चल पड़ा. उसने तय किया कि इन चुनौतियों का मुकाबले अब पहले से ज्यादा मजबूती से करेगा.
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धीरे-धीरे उसे अपना दुख कम होता हुआ प्रतीत हो रहा था. उसके जैसा ही भाव वहां मौजूद हर व्यक्ति में आ रहे थे.
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सच में सबको अपना दुख ज्यादा बड़ा और ज्यादा पीड़ादायक लगता है. लगता है कि वही संसार का सबसे दुखी प्राणी है.
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किसी के महल के आगे से गुजरते हुए यदि यह ख्याल बार-बार आए कि जब किस्मत बंट रही थी तो वह इस आदमी से पीछे क्यों रहा. अगर वह आगे रहता तो उसे भी ऐसा ऐश्वर्य मिल जाता.
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तत्काल अस्पतालों के बारे में सोचिए जहां लाखों लोग जीवन-मृत्यु के बीच झूल रहे हैं. अपाहिज हो चुके हैं. सोचिए कि कम से कम आप किस्मत की लाइन में इनसे आगे तो थे. स्वस्थ हैं, अपना काम स्वयं कर सकते हैं.
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बेहतर है कि हम यह सोचें- दुनिया में कितना गम है, मेरा ग़म कितना कम है.
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कैसे मान लूँ की तू...
पल पल में शामिल नहीं.
कैसे मान लूँ की तू...
हर चीज़ में हाज़िर नहीं.
कैसे मान लूँ की तुझे...
मेरी परवाह नहीं.
कैसे मान लूँ की तू ...
दूर हे पास नहीं.
देर मैने ही लगाईं ...
पहचानने में मेरे ईश्वर.
वरना तूने जो दिया ...
उसका तो कोई हिसाब ही नहीं.
जैसे जैसे मैं सर को झुकाता चला गया
वैसे वैसे तू मुझे उठाता चला गया....
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((((((( जय जय श्री राधे )))))))
COPY PEST
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