जीवन है तब तक विचार है
इसीसे जीवन संचालित होता है
जिस दिन यह नहीं तब तक जीवन भी नहीं
विचार शून्य जीवन मृत्यु समान
जब तक है चलता है
कभी इस पर धूल भी जम जाती है
तब झाड़ पोछ कर साफ कर दिया जाता है
वैसे ही जैसे पंखा
जितना चलता उतनी ही धूल
कभी कभी गर्म भी हो जाता है
रात दिन चलता है
जब चाहे चालू
विचार भी तो ऐसे ही
उस पर भी लगाम कब और कहाँ
बहुत से अनुत्तरित प्रश्न
वह भी विचार से ही मिल सकता है
विचार को विचरण करने दिया जाय
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