सड़क पर चलते लोग
सब चले जा रहे हैं अपने गंतव्य
कोई भेदभाव नहीं
न जात-पात
न धर्म-संप्रदाय
न अमीर-गरीब
न भाषा-प्रांत
सबके लिए यह खुला है
कोई पांबदी नहीं
पैदल ,बैलगाड़ी या मोटरकार
साईकिल या बाइक
अपनी गति से
कोई धीमा तो कोई फर्राटेदार
कोई अपनी धुन मे
कोई अकेला तो कोई समूह में
कोई अपने परिवार और दोस्तों के साथ
सडक कोई भेदभाव नहीं करती
सबको एक समान ही देखती
पर उसी पर जब दंगे फसाद होते हैं
उसे रक्तरंजित कर दिया जाता है
तब वह भी सोचती है
वह लोग अब.कहाँ गए
यह कौन अंजान लोग हैं
जो यह अंजाम दे रहे हैं
यह तो हर रोज वालों की भीड़ तो नहीं
यह तो अंजान चेहरे
आज कहाँ से आ गए
मुझे भी शांति की दरकार है
यह खून खराबा पसंद नहीं
मैं लोगों के लिए रातदिन तैयार हूँ
कम से कम मुझे तो बख्श दे
बवाल मत करें
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