कौन कहता है जिंदगी बहुत छोटी होती है
जिंदगी तो बड़ी होती है
पर जीना हम देर से शुरू करते हैं
हर पल अभावों का रोना
समझ ही नहीं पाते हैं
छोटी छोटी खुशियों को
उनके मर्म को
जो हम चाहते हैं वह नहीं मिला
उस गम को
पर जो मिला उसका क्या??
जब समझ जाते हैं
तब तक तो देर हो चुकी होती है
ईश्वर ने इतना कुछ दिया है
उसका आनंद उठाया जाय
बजाय कोसने के
हर पल का आनंद लिया जाय
उसकी कृपा अपरम्पार है
वह सभी को देता है
पर हमारे हिसाब से नहीं
हमें हिस्सा जो है वह
कर्मो का भी तो लेखा जोखा होना है
आप परिपूर्ण तो नहीं
फिर सब कुछ आपको ही क्यों?
जितना मिला है
शायद औरो को वह भी नहीं
कर्म और भाग्य का लेखाजोखा करने वाले आप कौन??
वह उस लेखाकार पर छोड़ दीजिए
आप तो बस जिंदगी को जिंदगी की तरह जीए
जिंदगानी मे जिंदादिली निर्माण करिए
जिंदगी देर से शुरू न करें
हर वक्त हर पल को जीए
महसूस होगा
जिंदगी इतनी भी छोटी नहीं
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