चांद रोज निकलता है
हर रोज कभी छोटा कभी बड़ा
कभी बादलों के पीछे
अमावस्या भी आती है
पूर्णिमा भी आती है
हाँ कभी कभी ग्रहण भी लगता है
हर रूप मे सुंदर
इस चांद पर दाग भी है
पर उपमा भी उसी की
अपनी शुभ्र चांदनी सब पर फैलाता
दिन भर तपी धरती पर शीतलता फैलाता
सब शीतल हो जाते
घना अंधकार फिर भी वह प्यारा लगता
सबका प्यारा
बच्चों का चंदामामा
सुहागिनों का आदरणीय
ईद का चांद
यह कभी भेदभाव नहीं करता
इसके आसपास तारे
यह उनको भी चमकाता
कभी चरखा कातती बुढिया की छवि दिखती
कभी मां की लोरी मे बच्चों को रिझाना
हर बच्चो का प्यारा मामा
जब यह भेदभाव नहीं करता
तो हम क्यों??
यह मामा हमें सिखाता
मानव बनो
हर दिल अजीज बनो
गतिशील बनो
अमावस्या है तो पूर्णिमा भी आएगी
हर मौसम फिर
वह जाड़ा हो या बरसात
रूकना नहीं है
बस चलना होगा
हर तूफान का सामना करना होगा
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