मैं निराश हूँ हताश हूँ
मैं उपेक्षित भी हूँ
मैं ब्राह्मण हूँ
मै आदरणीय था कभी
आज उपेक्षित हूँ
मेरी कोई कद्र नहीं
मुझे कोई आरक्षण नहीं
मेरे पूर्वज भिक्षा मांगते थे
मैं शिक्षा देता था
पूजा पाठ करता था
फिर भी मुझे दरिद्रनारायण ही संबोधा जाता था
मैं ही सुदामा था
जिनका परिवार भूखा रहता था
मैं ही द्रोणाचार्य था
जो कि अपने बेटे अस्वस्थामा को दूध की जगह आटे का घोल पकाकर पिलाता था
मजबूरी ने कौरव पांडव का गुरू बना दिया
मुझे कैद और बांध कर रख दिया गया
किसी और को मैं शिक्षा दे ही नहीं सकता था
एकलव्य का अंगूठा मांगना पड़ा
मैं ही चाणक्य हूँ
जिन्हें भरे दरबार में अपमानित किया गया था
जिसका परिणाम मौर्य साम्राज्य हुआ
एक चरवाहे के बेटे को
भारतवर्ष का शक्तिशाली राजा चंद्रगुप्त मौर्य बना दिया
मैं वह भिक्षुक हूँ जो सम्राट अशोक को शांति का दूत बना दिया
बौद्ध धर्म की स्थापना हुई
राजा तो कोई और होता था
पर राजनीति का माहिर खिलाड़ी तो मै ही था
पर मुझे कभी सत्ता हासिल नहीं हुई
मेरा कार्य तो विद्या दान करना था
सर्वश्रेष्ठ दान जो समाज को बदलने का माद्दा रखता है
पर मुझे क्या मिला
आरक्षण
इस आरक्षण की भेंट मे सबसे पहले मैं चढा
मैं तो जमींदार भी नहीं था
मैं संपत्ति शाली भी नहीं था
मैं तो शक्तिशाली भी नहीं था
फिर भी मुझे क्यों मोहरा बनाया गया
आज मुझे ज्यादा अंक मिलकर भी एडमिशन नहीं
आज मुझे नौकरी नहीं योग्यता के बावजूद
मेरा पूजा पाठ भी अब व्यावसायिक बन रहा
योग्यता की जहाँ कद्र नहीं
वह राष्ट्र की उन्नति किस तरह.होगी
जहाँ एक तबके का नौजवान निराशा के गर्त मे जा रहा
नशे और लूटपाट अपना रहा
हर कोई द्रोणाचार्य नहीं हो सकता
उनका भी अपमान हुआ था
राजा दुपद्र उनके परम मित्र द्वारा
उनकी योग्यता को बांधा गया था
महाप्रतापी भीष्म द्वारा
वे परशुराम नहीं थे
पर कौरव पांडव के गुरू तो थे
शिष्य तो उनके ही थे
महाभारत का एक कारण वे स्वयं थे
वह समाज वह राष्ट्र
कभी आगे नहीं जा सकता
जहाँ समान अधिकार न मिले
आक्रोश जन्म ले
अतीत मे जो भी हुआ
उसका परिणाम वर्तमान पीढी को क्यों??
हर उच्च वर्ग कहे जाने वाला युवा
पूछ रहा है
हमारा अपराध क्या ??
हमारी संख्या कम है इसलिए
हम वोटबैंक नहीं है इसलिए
सब नेता अपनी अपनी जाति का हवाला देते हैं
यह तो जातिवाद को खत्म करना नहीं
बढ़ावा देना है
कब तक यह चलेगा
आजादी के इतने सालों बाद भी
यह हालात
तब तो वह गुलामी ही ठीक थी
उन्होने तो बुराइयों को खत्म किया
सती प्रथा ,बली प्रथा ,विधवा विवाह
बालिकाओं को तथा हर वर्ग को शिक्षा का अधिकार
हमारा संविधान
हम स्वतंत्र
फिर भी वंचित
यह तो राष्ट्र को शोभा नहीं देता
हमारी सुध कौन लेगा
हमारा नेता कौन
यह हर ब्राह्मण ,क्षत्रिय और वैश्य पूछ रहा है
अपनी सरकार से
यह दरकार है उसकी
उन्हें दरकिनार न करें
मैं न जवाहर लाल नेहरू हूँ
न राहुल गांधी हूँ
मैं सामान्य जनमानस हूँ
जिसको भी जीना है
और जीने के लिए रोजी रोटी की जरुरत है
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