मुंबई महानगर मे एक अपना आशियाना
पत्थर के चने चबाने जैसा मुश्किल
पर एक खासियत यह भी
यहाँ कोई भूखा नहीं रहता
किसी रिश्तेदार के माध्यम से आ तो गए मायानगरी
रोजगार का भी इंतजाम
पर घर के रूप मे एक झोपडा
वह भी अपने गहने बेचकर
कहाँ गांव का वह बडा सा घर
कहाँ यह गली कूचो मे बसा हुआ दड़बेनुमा
पास ही सामने नाला बहता हुआ
शौचालय के सामने लंबी कतारें
खैर जिंदगी चल निकली
बच्चों की पढाई लिखाई हुई
आमदनी भी बढ़ी
अब एक इच्छा थी
एक अच्छा वन बी एच के फ्लैट ले लिया जाय
फ्लैट लिया गया
लडके का ब्याह भी हुआ
रहने के लिए नये घर मे आ गए
बहू वहाँ कैसे रहती
सारी जमा पूंजी लगा दी
झोपडा भी बेचा
पर हालात नहीं बदले
एक ड्राइंग रुम
एक बैड रूम
हमे एक गैलरी मे रहने को दे दिया
छोटी सी जिसके मुश्किल से जमीन पर दो लोग सोए
दिन भर बैठकर यहाँ वहाँ काटना
ड्राइंग रुम मे दोस्त वगैरह आएंगे
वहाँ नहीं रहना
घुटन हो रही थी
अपने झोपडे की याद आ रही थीं
कोई सलाह देता
गांव चले जाओ
पर वह भी संभव नहीं
तीस बरसों मे बहुत कुछ बदल गया
वह पुराने लोग नहीं रहे
घर उनका जो वहाँ रहते हैं
इस उम्र मे अब जद्दोजहद नहीं होगी
सोचते हैं
जिंदगी मे क्या बदला
झोपडे से शुरू हुई जिंदगी
गैलरी मे आकर बस गई
हसरत पूरी नहीं हुईं
बल्कि अब खत्म हो गई
हसरतों का शहर मुंबई
उसमें हसरत ही मर गई
Hindi Kavita, Kavita, Poem, Poems in Hindi, Hindi Articles, Latest News, News Articles in Hindi, poems,hindi poems,hindi likhavat,hindi kavita,hindi hasya kavita,hindi sher,chunav,politics,political vyangya,hindi blogs,hindi kavita blog
No comments:
Post a Comment