हर पार्टी की एक जाति
हर पार्टी का एक धर्म
हर नेता किसी न किसी जाति का
या किसी धर्म का प्रतिनिधि
तब कौन सी जाति के साथ कोई नहीं
जो राजनीति मे अछूत है
चुनाव का समय
जाति की भरमार
जाति ही पहचान
धर्म ही जीत का आधार
न जाने कितने हथकंडे
न जाने कितना प्रलोभन
जनतंत्र के मंदिर मे किसका प्रवेश
किसका पलड़ा भारी
यह धर्म और जाति तय करेगी
तब विकास कहाँ गायब हो रहा
किसके साथ अछूतों जैसा व्यवहार
किसको सर माथे पर बिठाया जाय
यह सियासत है भाई
यहाँ सब कुछ चलता है
भले वह सिक्का खोटा क्यों न हो
पर जाति धर्म की मोहर उस पर हो
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