बरगद का विशालकाय पेड़
उसके नीचे पनपता छोटा सा पौधा
पर बरगद को यह सह्य नहीं
इसकी इतनी हिम्मत
यह मेरे सामने बढ़ रहा है
इसको तो मैं पनपने नहीं दूंगा
यह फितरत बरगद की नहीं
इंसान की भी हैबरगद का विशालकाय पेड़
उसके नीचे पनपता छोटा सा पौधा
पर बरगद को यह सह्य नहीं
इसकी इतनी हिम्मत
यह मेरे सामने बढ़ रहा है
इसको तो मैं पनपने नहीं दूंगा
यह फितरत बरगद की नहीं
इंसान की भी है
वह स्वयं कितना भी बड़ा हो जाय
महान बन जाय
पर अपने को श्रेष्ठ ही आंकना चाहता है
कोई उससे आगे निकलने की कोशिश करें
तरक्की करें
वह उसको बरदाश्त नहीं
अहम के मारे वह जल उठता है
मैं जो समाया है उसमें
साथ मे भय भी
कहीं उससे आगे निकल गया तो
उसका अस्तित्व खतरे मे पड़ जाएगा
और यह तो वह कतई नहीं होने नहीं दे सकता.
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