Friday, 9 November 2018

दीपक

यह दीपक है
रात भर जलता रहा
अंधेरे से लड़ता रहा
तब तक जब तक कि इसमें तेल-बाती थी
छोटा ही सही पर अपना असतित्व कायम रखता है
मिट्टी का बना हुआ
मिट्टी मे ही मिलना है
कुछ बहुत खूबसूरत है
कुछ रंगों और नक्काशी से सजे
पर काम एक ही
प्रकाश फैलाना
छोटी सी जिंदगी है इसकी
कोई भेदभाव नहीं करता
बस अपना कर्तव्य करता है
हर घर को प्रज्वलित करना
वह अमीर का हो
वह गरीब का हो
महल हो या झोपड़ी
ईश्वर का दरबार हो
या फिर पेड़ के नीचे हो
अकेला जलना हो या सबके साथ
यह हर परिस्थिति मे तैयार
सबका चहेता भी है
पर तब तक जब तक उपयोगी हो
बाद मे घूरे पर या कचरे के ढेर में
यही इसकी नियति है
पर यह हार नहीं मानता
उदास और दुखी नहीं होता
अंतिम लौ तक रोशनी देता है
बूझने से पहले अपनी पूरी शक्ति लगा देता है
अंत मे बुझ ही जाता है
पर जब तक रहा
रोशनी तो करता ही रहा
अमावस्या की रात मे भी जला
चमकदार लाईट और लड़ियां
भी उसे मात न दे पाई
उसका वजूद कायम रहा
बुझते और जाते हुए संदेश दे गया
जीओ तो मेरी तरह
बिना स्वार्थ के
कर्मनायक बनो
बिना लिए देने की कोशिश करें
मिट्टी का शरीर
मिट्टी मे ही मिलना है
तब मोह.क्यों
जलो तो दिपक की तरह
रोशनी फैलाते रहो
तूफान -आंधी कुछ न बिगाड़ पाएगी
जज्बा हो कुछ कर गुजरने का
अमावस्या हो या घनघोर अंधकार
प्रकाश को तो कोई रोक नहीं सकता
जब तक सांस है तब तक आस है
जिंदगी छोटी ही सही
साधारण ही सही
अपना वजूद स्वयं बनाना है
ईश्वर नहीं इंसान बनना है

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