वह किसान है
मटमैली धोती और कुरता
कंधे पर गमछा
पैरों मे घिसी चप्पल
चेहरा झुर्रियों से भरी
आँखें आसमान पर टिकी
ऊपर वाले की मेहरबानी पर
मौसम तो उसीके हाथ मे
जब चाहे बरखा या सूखा
पर मौसम की मार किसान पर
कब उसकी सारी मेहनत पर पानी फिर जाय
वह तो चाहता है
अपनी फसल को लहलहाते देखना
उसका उचित दाम मिलना
आखिर अन्नदाता भी खुशियों का हकदार है
उसका अपना परिवार है
पर यह होता नहीं है
श्रम करनेवाले को उसका उचित परिश्रामिक नहीं मिलता
बिचौलियों की बन आती है
वह कभी सरकार पर तो कभी भगवान पर आश्रित
अन्नदाता तो है पर मोहताज है
जो अपना और अपने परिवार का पेट भरने मे असमर्थ हो
कर्जदार हो
तब वह खेती क्यों करें
शहर की ओर रूख करना स्वाभाविक है
कहीं ऐसा न हो कि
किसान शहर की ओर पलायन करें
खेती करनेवाला बचे ही नहीं
तब लोगों का क्या होगा??
अभी भी समय है
किसान को सबसे पहले तवज्जो दी जाय
.. Happy Kisan Divas
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